कविता

‘होली है’ श्रीमती रानी शर्मा समाजसेवी,साहित्यकार कांकेर छ.ग.

‘होली है’

होली है भई होली है।
दिलों में उमंगो की मस्ती छाई ।
नगाड़ों की थाप पर,गीतों की लय पर,
मतवाला मन थिरक-थिरक जाए।

होली है भई होली है।

भूल कर भेद-भाव,एक दूजे को मल रहे गुलाल।
दूर हुए मन के सारे मलाल।
रंगों में सत्य-प्रेम का रंग मिला,
प्रीत के रंग रंग दे।

होली है भई होली है।

प्रियतम संग प्रीत भरी होली।
तन मन राधा, मीत बने कान्हा।
प्रीत रंग रंग दे सांवरिया।
जीवन भर न छूटे रंग प्यार के।
प्रियतम संग प्रीत भरी होली

होली है भई होली है।

जोगिया कहे भक्ति के रंग रंग दे कान्हा।
जिस रंग रंगे सुर,मीरा,रसखान।
भक्ति के जब रंग चढ़े
फीका लागे जग के सब रंग।

होली है भई होली है।

वीर सपूत कहे,तेरी रक्षा में भारत माँ।
तन-मन सब वारूँ,खून की होली खेलूँ।
तेरी खातिर बलि-बलि जाऊँ माँ।
तब उड़े मुझ पर,रंगा-रंग, गुलाल माँ।

होली है भई होली है।

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