आलेख

‘प्रमाणित पद्वति में चिकित्सा की स्वतंत्रता’ श्री हरहर शम्भू कुमार चौधरी (एम जे) मुख्य संपादक (सारांश दैनिक)

चिकित्सकों को किसी भी प्रमाणित पद्धति में चिकित्सा करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए यदि उनके पास पर्याप्त प्रशिक्षण और अनुभव हो ,किसी पद्धति विशेष (पैथी) तक सीमित रखना उनकी क्षमताओं का सीमित लाभ समाज को पहुँचाता है और चिकित्सकों के अन्य पैथी में उनकी संभावनाओं को समाप्त कर देता है l अलग-अलग पैथियों में बँटी चिकित्सा पद्धति में किसी एक पद्धति (पैथी) को यथा सम्भव प्रोत्साहित करना एवं अन्य चिकित्सा पद्धतियों को हतोत्साहित करना अनुचित है l

 

सभी पद्धतियों की अपनी सीमाएँ और विशेषताएँ हैं l जैसे एक एलोपैथी का चिकित्सक अपने मरीजों को आयुर्वेदिक,होम्योपैथिक,युनानी आदि पैथियों की दवाएँ देने के लिए स्वतन्त्र है ,जबकी दूसरे पैथी से सम्बन्धित चिकित्सकों को एलोपैथ की सामान्य दवाएँ भी देने से रोका जाता है l जबकि उन्हें भी पर्याप्त प्रशिक्षण देकर उनकी क्षमता को बढ़ाकर समाज को लाभान्वित किया जा सकता है, विशेषकर दूर दराज के क्षेत्रों में l

 

चिकित्सा क्षेत्र की वास्तविकता, धरातल पर यह है कि आज आपको देश के किसी भी कोने में एलोपैथ की दवाएँ आसानी से उपलब्ध हो जाएगी पर अन्य पैथ की दवाओं की उपलब्धता के सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता है l ऐसे में अन्य पैथी के चिकित्सकों के हाथ बंधे होते हैं और उन्हें सीमित संसाधनों में चिकित्सा करना पड़ता है l आजकल एलोपैथिक चिकित्सक भी कई बिमारियों की चिकित्सा में आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग एलोपैथ की दवाओं के साथ कर रहे है,वही कुछ मामलों में होमियोपैथिक दवाएँ भी दे रहे है जैसे रूमा दर्दनाशक तेल, स्किन क्रीम आदि | यहाँ प्रश्न उठता है कि आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक चिकित्सकों को भी कुछ एलोपैथिक दवाएँ देने की स्वतन्त्रता क्यों नहीं होनी चाहिए ? पर इन पैथी के चिकित्सकों को एलोपैथिक दवाएँ देने पर रोक लगाना और एलोपैथिक चिकित्सकों को हर तरह की दवाएँ देने के लिए छूट देना अन्य पैथी के चिकित्सकों के साथ क्या अन्याय नहीं है ? या फिर एलोपैथी को चिकित्सा क्षेत्र में एकाधिकार देने का षडयंत्र क्यों न माना जाए?

 

सभी चिकित्सकों की शिक्षण पद्धति का मूलमन्त्र है कि कैसे रोगी को रोगमुक्त किया जा सकता है l प्राकृतिक,होमियोपैथिक,इलेक्ट्रोहोमियोपैथिक,युनानी आदि पैथियों के चिकित्सक रोग की पहचान के लिए बहुत ज्यादा पैथोलॉजी जाँच पर निर्भर नही होते, इन पैथियों के चिकित्सक शारीरिक परीक्षण / लक्षणों से ही ही कई बिमारीयों का पता लगा लेते है,जिससे मरीजों का काफी पैसा बच जाता है |

ऐसी ही एक परीक्षण पद्धति हाल ही में इलेक्ट्रोहोमियोपैथ के पाठ्यक्रम में जोड़ा गया है- इरिडियोलॉजी । इस परीक्षण पद्धति में आँखो को देखकर उसके बारीक अध्ययन से शरीर में व्याधियों का पता लगाया जाता है l इतना ही नही शरीर के अंतः ग्रंथियों की स्थिति का भी पता लगाया जा सकता है। यह परीक्षण पद्धति सस्ते में ही रोग का पता लगा लेती है विषम परिस्थितियों में अन्य जाँच भी कराया जाता है।

 

एलोपैथी चिकित्सा पद्धति की चकाचौंध को उसी तरह समझा जा सकता है जैसे हिन्दी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ के विद्यालय और अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में अन्तर ।

 

पाठ्यक्रम, एक समान होने पर भी निजी अंग्रेजी विद्यालयों की चकाचौध देख मन में यही प्रश्न उठता है कि यहाँ पढा़ई अच्छी होती होगी। जबकी वास्तविकता यह है कि सरकारी विद्यालयों के शिक्षक उच्च शिक्षित और प्रशिक्षण प्राप्त अध्यापक होते है,जबकि निजी विद्यालयो में ऐसे शिक्षकों का अभाव होता है फिर भी लोगो के मन में यही आशंका बनी रहती है कि निजी विद्यालयों में अच्छी शिक्षा दी जाती है (कुछ विद्यालय अपवाद हो सकते हैं) एक गरीब आदमी की भी यही इच्छा होती है कि उनके बच्चे मँहगे निजी विद्यालय मे पढे़ इसके लिए वह हर जतन करने को तत्पर होता है l कुछ ऐसा ही एलोपैथ और अन्य चिकित्सा पद्धतियों के बीच देखा जा सकता है।आजकल अच्छी स्वास्थ सेवा का अर्थ मंहगे अस्पतालों से लगाया जाता है, लोगों के मन में यह बात घर कर गई है कि मँहगा ईलाज ही अच्छा होता है

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