कविता

‘आजादी का अमृत महोत्सव’ श्रीमती रानी शर्मा,साहित्यकार,समाजसेवी कांकेर छ.ग.

 ‘आजादी का अमृत महोत्सव’

गाँव-गाँव, शहर-शहर,गली-गली,
हर घर लहरायेगा तिरंगा प्यारा।
आजादी के अमृत महोत्सव का,
उत्सव मनाये हर्षित जन-मन।
भारत माँ के आँचल सा ,
गगन चुमता लहराये तिरंगा प्यारा।
सोने की चिड़िया कहलाती थी भारत।
लूटने आये अत्याचारी,
भीतर घात लगाये बैठे थे घाती।
अखंडता को खंडित कर रहे थे दुराचारी।
धन भंडार,अस्मिता,अस्मत लूट रहे थे पाखंडी।
भारत के वीर सपूतों में,
भड़क उठी स्वतंत्रता की अग्नि।
सर पर बाँध कफन,
प्राणों की आहुति देने, निकल पड़े आजादी के दिवाने ।
शंखनाद फूंका मंगल पांडे ने।
बलि-बलि गई रानी लक्ष्मीबाई।
फांसी चढ़ गये,राजगुरु, सुखदेव, भगतसिंह।
ऊधमसिंह, मदनलाल की आजादी का,
जयघोष लंदन में गूंज था।
रक्त रंजित हुई धरा।
सिसक रही थी भारत माता।
आजादी के मतवालों के आगे,
अंग्रेजों ने घुटने टेके।
भारत छोड़ गए।
जाते-जाते जाते विभाजन का नासूर दे गए।
अमृत महोत्सव पर,
कसम हम खाते हैं ।
कभी झुकेंगे नहीं, कभी रूकेंगे नहीं।
आगे बढ़ते जायेंगे।
दुश्मन आँख दिखाये तो,
आँख निकाल,कँजा हम खेलेंगे।
घर के भेदी का मुंह तोड़,
हाथों में रख देंगे।
आतंकी सांपों का फन कुचल कर,
उस पर चढ़ हम नर्तन करते हैं।
आजादी के वीर शहीदों का शत् शत् नमन हम करते हैं।
जय हिन्द।जय भारत।

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