कविता

‘महाबला’ श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी” शिक्षक साहित्यकार कांकेर छ.ग.

साहित्यकार परिचय- श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी”

जन्म- 10 दिसंबर 1964

माता-पिता- स्व.कान्ति देवी शुक्ला/स्व.हरप्रसाद शुक्ला

शिक्षा- एम.कॉम, बी.एड.

प्रकाशन- कहानी (किरन),साझा संग्रह (काव्य धरोहर)

सम्मान-

सम्प्रति- व्याख्याता-शास.उच्च.माध्य.विद्या.कोरर, (काँकेर) छ.ग.।
संपर्क- 9826406234

 

‘महाबला’

धीरे से हुआ परिवर्तन,कुछ न पता चला।
नारी पहले अबला थी,बन गई तू सबला।
परदों में ही रहती थी तू,
पीड़ाएँ सब सहती थी तू,
सारी दुनिया से अनजानी,

आँसुओं से भरी कहानी,
आत्मबल धीरे-धीरे,तेरा बाहर निकला।
नारी पहले अबला थी,बन गई तू सबला।
जीवन तेरा अँधेरा था,
बस दुःखों का घेरा था,

तू थी महज खिलौने सी,
बाघों में मृगछौनै सी,
आज तेरे बल ने,कष्टों का पाषाण दला।
नारी पहले अबला थी,बन गई तू सबला।
कभी किसी ने वस्त्र उतारे,

कभी कोई भूखों सा निहारे,
राहों में रावण भी मिले,
कपटी दुर्योधन भी मिले,
आज तेरे तापों से,हर भीषण पाप जला।
नारी पहले अबला थी,बन गई तू सबला।

आज तू नापे है आकाश,
सारी शक्ति तेरे पास,
सागर की गहराई तू,
सारे जग पर छाई तू,
है किया प्रमाणित तूने,तू है महाबला।

नारी पहले अबला थी,बन गई तू सबला।

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