(मनोज जायसवाल)
रायपुर(सशक्त हस्ताक्षर)। शिशिर के अवसान और वसन्त के आगमन की बेला में सतनाम की गूंज एवं करतल ध्वनि के बीच सन्त शिरोमणि गुरु घासीदास की कर्मस्थली भण्डारपुरी धाम के मोती महल के गर्भ गृह में अखण्ड ज्योति के दर्शन एवं गुरु सोमेश बाबा के सत्संग पश्चात हायर सेकेण्डरी स्कूल के विशाल हाल में 22 जनवरी 2023 को छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के तत्वावधान में साहित्य वाचस्पति- डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति की 2 पुस्तकों- ‘अग्निपथ के राही’ सम्पादकीय राष्ट्रीय साझा काव्य संग्रह और ‘सवनाही’ छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह का विमोचन वरिष्ठ साहित्यकारों, जनप्रतिनिधियों, गणमान्य नागरिकों एवं विद्यार्थियों की गरिमामयी उपस्थिति में हर्षोल्लास के साथ सम्पन्न हुआ।
सर्वप्रथम विश्व वन्दनीय प्रातः स्मरणीय सन्त गुरु घासीदास की प्रतिमा पर दीप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण किया गया। इस शुभ बेला में मंगलाचरण की मधुर ध्वनि गूंज उठी-
चरणारवृंदं गुरु घासीदासं नमामि, गुरुदेव शरणं गुरुदेवं नमामि
मनोभावं त्रम पाप हारं, भव भय नाशं गुरुदेवं नमामि
कल्याण रूपम आनन्द कन्दम धाराsमृत गुरुदेवं नमामि
न जानामि जापं न ध्यानम् गुरुदेवं घासीदासं नमामि।
तत्पश्चात कलमकारों के स्वागत उपरान्त छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के तत्वावधान में प्रदेश भर से पधारे दर्जन भर नामी कवियों, गीतकारों, ग़ज़लकारों एवं छन्दकारों की उपस्थिति से महफिल में इन्द्रधनुषी छटा दृश्यमान होने लगी। इस बीच मंच के अध्यक्ष- डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति ने कहा- “गुरुजी के आशीर्वाद से तथा आप सबकी शुभकामनाओं की बदौलत हमने छह माह में मंच के बैनर तले 17 पुस्तकों का विमोचन कर कवि सम्मेलन का डबल हैट्रिक लगा दिया है। यह क्रम निरन्तर जारी रहेगा।” इस दौरान 40 साहित्यकारों को ‘कलमकार अग्निपथ सम्मान-2023’ प्रदान किए गए।
तालियों की गड़गड़ाहट के मध्य मंच संचालन की बागडोर सम्हाल रहे प्रख्यात कवि जगतारन प्रसाद डहरे के श्रीमुख से ये शब्द गूंज उठे-
होथे बढ़िया काम, आज भण्डारपुरी धाम म
कवि के सम्मान, आज भण्डारपुरी धाम म
परे रहेन छिदिर-बिदिर, अब एक जघा जुरियाये हन
रद्दा नवा देखाय खातिर, हम जम्मो उम्हियाये हन
हे सुघ्घर संजाम, आज भण्डारपुरी धाम म
होथे बढ़िया काम, आज भण्डारपुरी धाम म।
कवि सम्मेलन में सतनाम की जबरदस्त गूंज रही। जांजगीर से आए विख्यात ग़ज़लकार मनोज खाण्डे ‘मन’ ने ये ग़ज़ल पढ़कर खूब तालियाँ बटोरी-
रोज इक दीपक जलाओ शाम को,
दिल से फिर जपना सदा सतनाम को।
पश्चात अग्निपथ के राही अर्थात सैनिकों के सम्मान में यह ग़ज़ल पढ़कर बेहतरीन समा बांध दिया-
मौत की खबर जब पहुँचे मेरे गॉंव में,
आँख में आँसू हो सबकी लब पे हिन्दुस्तान हो।
आना जिनको हो मेरी मैय्यत पे कहता हूँ उन्हें
हिन्दू-मुस्लिम कुछ नहीं वो सिर्फ एक इंसान हो।
पश्चात छत्तीसगढ़ के अगुवा बेटा के नाम से विख्यात बूँदराम जांगड़े ने समाज को चेतावनी देते हुए ये पंक्तियाँ पढ़कर लोगों को सोचने के लिए विवश कर दिया-
कइसे लिखबे सतनाम धरम, बिगाड़ डारे हस तोर करम।
भुला घले सतनामी होके, कहीं नइ जाने गुरु मरम।।
चेतना के बीज को बेहतर ढंग से बिखेरते हुए पचपेड़ी-बिलासपुर से पधारे हुए छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के संरक्षक डॉ. गोवर्धन ने करतल ध्वनि के बीच यह भावपूर्ण रचना पढ़कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया-
धर्म में धर्मान्ध हुए लोग क्यों, राजनीति में भी हुए गुलाम।
सच को स्वीकारने में शर्म क्यों, बिन चेतना मिले न मुकाम।।
सत के पुजारी सन्त गुरु घासीदास बाबा की कर्मस्थली में चहुँओर सत, श्वेत और सतनाम की गूंज रही। बेमेतरा जिला से पधारे विख्यात कवि गणेश महन्त ‘नवलपुरिहा’ ने तालियों के गूंजते शोर के मध्य ये कविता पढ़कर श्रोताओं को झकझोर कर रख दिया-
डॉ. अम्बेडकर की तरह बनो रचनाकार
गुरु घासीदास की तरह मिटाओ विकार
पेरियार की तरह ज्वालामुखी बनो
कि लोग मरते दम तक करते रहे विचार।
समाज में गलत परम्पराओं के विरुद्ध शंखनाद करते हुए रिसदा-बिलासपुर से पधारी हुई कवयित्री भारती नंदनी ने शेरनी की तरह दहाड़ते हुए ये सुन्दर पंक्तियाँ पढ़ीं-
न हमें मन्दिर चाहिए, न मस्जिद चाहिए
बच्चे खेले साथ-साथ वो विद्यालयीन मुकाम चाहिए।
गीता, कुरान और बाइबिल का काम नहीं यहाँ,
सबके लिए समान अधिकार लिखे संविधान चाहिए।।
जब तक जिस्म में जान है, दर्द तो होगा ही; मरने के बाद तो जलने का भी एहसास नहीं होता। हमेशा टूटने का मतलब खत्म होना नहीं होता, कभी-कभी टूटने से जिन्दगी शुरु भी होती है। कुछ ऐसे ही भावों को स्वर देते हुए मौदहापारा- रायपुर से पधारे कवि एवं गीतकार देव मानिकपुरी ने महफिल में ये रचनाएँ पढ़कर समा बांध दिया-
गृहस्थ जीवन में वियोग का दंश भी झेलना पड़ता है,
विवशता में घर और परिवार से दूर रहना पड़ता है,
सवाल उठाते हैं जब मानव तो जवाब देने ही पड़ते
कुछ पाने के लिए लोगों को कुछ खोना भी पड़ता है।
सम्पूर्ण एटलस का भार उठाए अग्निपथ के राही- मजदूर अपने श्रमसीकर से सींच कर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को सुन्दर बनाने का प्रयास करता है। बावजूद वे उपेक्षा के शिकार हैं और राष्ट्रीय पटल से अदृश्य हैं। वे दर्द की जमीन पर तकलीफों के साये में पानी की जगह आँसू पीकर जीवन बसर कर रहे हैं। इसे ही स्वर देते हुए पथरिया-मुंगेली से पहुँची कवयित्री जलेश्वरी गेंदले ने ये रचनाएँ पढ़ी-
मैं मजदूर हूँ, हालत देख रुक न पाऊँ,
क्या खाए बच्चे जब तक मैं न कमाऊँ।
‘प्रसन्नता’ एक औषधि है तो ‘हास्य’ जीवन की संजीवनी। ये दुनिया के किसी बाजार में नहीं मिलती, वरन् मनुष्य के अन्दर से प्रस्फुटित होती हैं। ये इंसान को स्वस्थ, सुखी और समृद्ध बनाती है। हँसी का वरदान केवल मनुष्यों को प्राप्त है। बेमेतरा के हास्य कवि एडवोकेट मणिशंकर दिवाकर गदगद ने अपने नाम के अनुरूप काव्य पंक्तियों से श्रोताओं को गुदगुदा कर गदगद कर दिए।
मोर देह म आगी फूँकत हस,
बिहनिया ले बीड़ी धुँकत हस,
तोर मार म सिंहरगे हन,
घर भर के मन चिंहरगे हन।
‘सुरजीत’ वो नाम है, जिनकी समीक्षात्मक ग्रन्थ लिखने और साझा संकलनों में संकलनकर्ता के रूप में जबरदस्त पहचान है। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच ‘अग्निपथ के राही हम’ कविता पढ़कर महफिल में उन्होंने एक शानदार समा बांधा। मसलन-
अग्निपथ के राही हम, हमारा न कोई ठिकाना,
गाँव-शहर के कोनों में, तन जाता आशियाना।
पता नहीं आखिर कब तक, घूम-घूम जीवन गुजरेगा,
हमारा भी जीवन का स्तर, क्या कभी सुधरेगा?
अब बारी थी कार्यक्रम का शानदार संचालन कर रहे अपनी बेहतरीन प्रस्तुतिकरण की शैली के दम पर विख्यात कवि एवं गीतकार जगतारन प्रसाद डहरे की। उन्होंने करुण रस की इस रचना से हर एक को आद्योपान्त डुबो दिया। लोगों की आँखें नम हो गईं, तालियों का शोर थम गया, सिसकियाँ गूंज उठीं-
भर के आँख समन्दर खारा, घर म मोर बता देहा
करुन भाव से करत इशारा, घर मा मोर बता देहा
प्रान पियारी नारी पूछही, दूरी छोड़ बता देहा
मांग के लाली सेन्दूर पोंछत, चूरी फोर बता देहा
सुरता करे म मनाही नइहे, घर म मोर बता देहा
अग्निपथ के राही नइहे, घर म शोर पठा देहा।
धुंधलाती शाम, घोंसलों की ओर लौटते खग-वृन्द और दस्तक देती ठण्ड की बेला में कार्यक्रम को समापन की ओर ले जाते हुए छत्तीसगढ़ कलमकार मंच के संस्थापक-अध्यक्ष डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति, उपसंचालक, छत्तीसगढ़ शासन, महिला एवं बाल विकास विभाग रायपुर ने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए तमाम कलमकारों, जनप्रतिनिधियों, गणमान्य नागरिकों, उद्घोषक तथा दर्शक-श्रोताओं का आभार व्यक्त करते हुए करतल ध्वनि के बीच ‘ईश-विनय’ कविता की प्रेरणास्पद पंक्तियाँ पढ़ी-
मेरे प्रभु,
धन की अमीरी रहे ना रहे,
मन की फकीरी कभी मत देना ;
मौत की अगन गवारा है लेकिन,
बिछोह की तपन कभी मत देना।
प्रीत की जीत हो ना हो,
शत्रुता की रीत कभी मत देना ;
अन्धेरे की कुरूपता गवारा है लेकिन,
चिराग की निष्ठुरता कभी मत देना।
फरवरी-2023 में नवीन साझा काव्य संकलन ‘सरगम के मेले’ के लोकार्पण एवं कवि सम्मेलन में मुलाकात के वादे के साथ सरपंच प्रतिनिधि अनूप कुमार के आभार प्रदर्शन पश्चात कार्यक्रम सम्पन्न हो गया।