पुण्य स्मरण

सहृदयता के ध्वजवाहक श्री राम खिलावन टण्डन

आपका पुत्र
किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्यकार एवं प्रशासनिक अधिकारी

स्व. श्री राम खिलावन टण्डन

जाने जिन्दगी कितने पड़ावों से होकर गुजरती है और अन्ततः मौत की चिर-निद्रा में विलीन होती है। अब अस्सी वसन्त का वो सफर थम गया है। विश्वास नहीं होता कि हमारे सिरमौर शान्त, सरल और सहृदय पूज्य पिता श्री राम खिलावन टण्डन अब हमारे बीच नहीं रहे। यह एक कर्मयोगी माटी-पुत्र का अवसान है, जिन्होंने अपने ईमान और सत्कर्म से पसीने के मूल्य को न केवल एक नई परिभाषा दी, वरन सामाजिक क्षितिज पर उसे प्रतिष्ठित भी किए।
कुछ मूरत होती है ऐसी….

 

मानो वह इंसानियत की शान हो,
सरलता सहजता सरसता और
जिन्दादिली की पहचान हों।

 

पिताश्री का मनोविज्ञान गजब का था। वे विरासतन सम्पत्ति को सन्तान के लिए उपहार मानते थे, जिस पर सन्तान का कर्तव्य न केवल उसे अक्षुण्य बनाए रखने का होता है, वरन उसमें श्री-वृद्धि का भार भी उन पर होता है। इसी सोच के चलते अपने पिताजी कीर्तिशेष श्री दयाराम टण्डन का स्नेह-पात्र बनकर उनके बताए हुए मार्ग पर चलते हुए दो भाइयों और चार बहनों के मध्य अपने हिस्से में प्राप्त सम्पत्ति और खेतीबाड़ी को जीवनपर्यन्त सुरक्षित रखकर अपनी लगन और मेहनत के बल पर अपने सभी पाँच पुत्रों को शिक्षा, संस्कार, सेवा और सच्चरित्रता के मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित किए।

 

हमारी माँ गृहस्थी का कुशल प्रबन्धन कर पति के इस कार्य में पूर्णतया सहभागी रहीं। फलस्वरुप आज हमारी तरक्की, यश और गौरव किसी से छुपा नहीं है। निःसन्देह भविष्य में भी उनके आशीष हमारा पथ-प्रदर्शन करेगा। अब भी माँ हमारे साथ हैं।

 

ऐसे शख्स काल को जीत लेते हैं
कभी नहीं मरते हैं,
यादों में, भावनाओं में और
मन की अतल गहराइयों में भी
सदा जिन्दा रहते हैं।

 

पिताजी पशु चिकित्सा के क्षेत्र में गहरी समझ रखते थे। अनेक बार मस्तूरी और बिलासपुर के पशु चिकित्सा विभाग के सर्जन उनसे कई बीमारियों के बारे में चर्चा करके मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। अपने पिताजी से प्राप्त पशु चिकित्सा के ज्ञान में पर्याप्त अभिवृद्धि कर हजारों मवेशियों को अ-समय मौत के मुँह में जाने से बचाए।

 

पिताश्री में पशुओं के इलाज को लेकर अजीब जुनून था। इस मामले में उनके लिए अर्द्धरात्रि भी दिन की तरह थी। वे कभी भी किसी के बुलावे पर परोपकार और सेवा का भाव लिए हुए चले जाते थे, जबकि हमारी माँ जीवनसंगिनी होने के नाते वक्त के तकाजे को ध्यान में रखकर ही बाहर जाने को कहती थी। बावजूद पिताजी के सेवा-जुनून के आगे सब फेल था। उनके इस उल्लेखनीय कार्यों के लिए उन्हें अनेक सम्मान और प्रशंसा प्राप्त हुए।

 

पिताश्री को कई बार पंचायत स्तर से भी एक जागरूक किसान, उत्कृष्ट पशु-सेवक और सहृदय व्यक्तित्व होने के नाते अनेक मंचों से सम्मानित किए जाते रहे। कोई शख्स ऐसे ना होंगे जो पिताजी से मिलकर उनकी सरलता, सज्जनता और मीठी वाणी से प्रभावित हुए बिना रह सके हों। ईमानदार इतने कि लोग पिताजी की ईमानदारी की कसम खाते रहे।

 

ईश्वर ऐसे शख्स को
अपने श्री-चरणों में स्थान दें,
खुश, आबाद वो सलामत रखें
उन्हें शान्ति और सम्मान दें।

 

सर्व समाज में पिताजी की बहुत गहरी पैठ थी। उनमें सामाजिक सरोकार के प्रति अन्तर्दृष्टि थी। वे दीन-दुःखी और यहॉं तक कि अपरिचित लोगों के लिए भी भोजन-पानी की व्यवस्था करने को तत्पर रहते थे। अनेक बार माँ को बोलकर खाना बनवाकर भूखे लोगों को खिलाते रहे। भूखमरी के पुराने दौर में जरूरतमन्दों के भोजन के लिए सूखे दाल-चावल की व्यवस्था होती रही। “कोई व्यक्ति भूखा ना रहे” यह संकल्पना पिताजी के कद को बहुत ऊँचा उठा देती है।

 

अब पिताश्री अपने भरे-पूरे परिवार को छोड़कर सतलोकी हो गए हैं। इस नाते भी उनके मिशन को आगे बढ़ाने की महती जिम्मेदारी हमारे कन्धों पर आ गई है। उनके आशीषों की रौशनी में दायित्व निर्वहन की शक्ति सतगुरू हमें दें, ऐसी प्रार्थना है। 15 जून 2022 ई. की शाम 6:30 बजे पिताश्री के अन्त्येष्टि-कर्म (माटी-रस्म) सम्पन्न होते ही असाढ़ मास का पहला दिन सावन- भादों सी अनवरत बरसात और झड़ी अपने माटी-पुत्र के प्रति प्रकृति की असीम अनुकम्पा थी।

 

उस महान आत्मा की शान्ति के लिए तथा दुःख की इस घड़ी में शोक-सन्तप्त परिवार के लिए संवेदना व्यक्त करने हेतु हम आप सबके विनम्र आभारी हैं।

 

मन है धरातल, दिल भावनाओं का समन्दर
उमड़ रहा हर पल, स्मृतियों का बवण्डर
हर लम्हा दिल पुकारे, रो पड़े मन
सूना-सूना घर-आँगन, तड़प उठे जन-मन
दूर होकर भी, आसपास ही होते हम
हर साँसों में, आहट तुम्हारी पाते हम।
आपकी यादों में… अश्रुपूरित श्रद्धांजलि…।

 

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