साहित्यकार परिचय – विजय वर्धन
माता-पिता –स्वर्गीया सरोजिनी देवी, स्वर्गीय हरिनंदन प्रसाद
पत्नी – श्रीमती स्तुति रानी
जन्म – 10 .10. 1954
शिक्षा –बी .एस .सी .ऑनर्स, एम. एस. सी, बी. एड.
प्रकाशन – दो पुस्तकें प्रकाशित
1. मेरा भारत कहां खो गया
2. हमारा प्यारा भागलपुर
सम्मान- विभिन्न संस्थाओं से सम्मानित
संप्रति -भारतीय स्टेट बैंक से अवकाश प्राप्त
सम्पर्क – लहेरीटोला,भागलपुर,बिहार मोबाइल -9204564272
”हड़कम्प”
जंगल में हड़कंप मच गया कि एक दो दिनों में मनुष्य हथियार ले कर आएगा और सारे पेड़ों को काट कर बिल्डिंग बनाएगा। वनराज ने सारे जानवरों को बुलाकर एक सभा बुलवाई और इस समस्या से निबटने के लिए सुझाव मांगा चीते ने कहा महाराज, आदमी जैसे ही जंगल में घुसेगा मैं उसपर वार कर दूंगा जिससे वह डर कर भाग जाएगा। वनराज ने चीते को डाँटते हुए कहा- तुम कैसी मूर्खतापूर्ण बतें करते हो, मनुष्य क्या अब वही मनुष्य रहा, जानते नहीं हो उसने कितनी तरक्की कर ली है। वह क्या खाली हाथ आएगा, उसने ऐसे ऐसे हथियार बना लिए हैँ कि मीलों दूर से किसी की भी हत्या कर सकता है। यह सुन कर उदासी में सभी जानवर चुप बैठ गये और कोई तरकीब ढूढ़ने लगे।
अचानक लोमड़ी बोली हुजुर मेरा सुझाव है कि मनुष्य जैसे ही जंगल में प्रवेश करे मधुमक्खी बहनें उस पर टूट पड़ें। वे उसे इतना डसें कि मनुष्य सिर पर पैर रख कर भाग खड़ा हो जाए। वनराज ने कहा- शाबाश!!यह बहुत ही अच्छा सुझाव है। इससे सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।
मनुष्य जब जंगल में आया तब मधु मक्खियों ने उनपर धावा बोल दिया। मनुष्य का दल शीघ्र ही भाग खड़ा हुआ।। सारे जानवरों ने चैन की साँस ली और खुशियाँ मनाने लगे। मधु मक्खियों के लिये जानवरों प्रशंसित गान गाया और वनराज ने उन्हें ढेर सारा आशीर्वाद दिया। सभी जानवर जंगल में पूर्ववत आनन्द से रहने लगे।