केसरिया भारत : अमृत महोत्सव
द्यौलोक और पूरे विश्व की ये तपोभूमि,
भारत भरत की देवता भी गुण गाते हैं ।
भिन्न-भिन्न धर्मों के बहिष्कृत मतावलंबी,
विश्वगुरु के शरण आश्रय पाते हैं ।।
कितने सिकंदर यहाँ आए और चले गए,
गुरु गोविंद, बुद्ध, कबीर जाने जाते हैं ।
छटपटाहट व्याकुल मन मुक्ति सूझे,
अहंकारी रावण जैसे तीर खाने आते हैं ।।
केसरिया तरंग चढ़ा यौवन विवेकानंद,
खुदी, दयानंद रंग ढंग बन जाता है ।
हरा हरियारी जंगलों में प्रजावारी रंग,
सूखी शबरी में मातृत्व जगा जाता है ।।
नीयत के श्वेत रंग उन्नति प्रसंग संग,
तब चाँद पर शान से तिरंगा लहराता है ।
ललनायें पन्ना धाय, लक्ष्मी बनीं हैं जब,
मातृभूमि रंग अंग उमंग चढ़ जाता है ।।
घोर कालिमा से काली रात भी तो हमने हैं,
पहले भी जाने कितने तो बिताए हैं ।
तप के ही निकले हैं, बिखरे हैं, फिर भी
किसी को कभी ना हम तड़पाए हैं ।।
हौसले हैं बांकुरों ने मिग-ट्वेंटी वन से ही,
एफ सिक्सटीन भी मार गिराए हैं ।
कितने हुए हैं जयचंद यहाँँ, मगर
चाँँद में भी खिलखिलाईं फूलों सी ललनाएँ हैं ।।
कितनी ही महामारियों के दंश सदियों से,
झेलते रहे हैं सब बीत ही तो जाते हैं।
स्वतंत्रता के स्वर्गानंद हेतु बलिदान,
संकटों में रहे प्राण, कभी ना घबराते हैं ।।
है तो पुजारी हम सत्य अहिंसा के, पर
सर ऊंचा कर राफेल भी तो लाते हैं ।
शुभकामनाएं उनको भी एक बार चलो
ये जिनके लिए हैं, उन्हें दे ही दिए आते हैं ।।
पता- डॉ. भूपेन्द्र सोनी
सिहावा चौक, धमतरी छ.ग.
मो. 98260 66418