कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने कहा; कि स्कूल कालेज में हिजाब और भगवा स्कार्फ का जिद नही कर सकते हैं छात्र। अगली सुनवाई 14 फरवरी को होगी। आशा है कि न्यायपालिका राष्ट्र की गरिमा और विद्यालय के अनुशासन को ध्यान में रखते हुए अपना निर्णय सुनाएगी।
मेरे विचार से सभी को अपने मनोनुकूल वस्त्र चयन का अधिकार है, किन्तु प्रत्येक विद्यालय की अलग पोशाक उसकी अलग पहचान होती है । भारत इस्लामिक स्टेट नहीं है, क़ुरान में क्या लिखा है और क्या नहीं लिखा इससे देश न्यायपालिका का कोई लेना देना नहीं होना चाहिए भारत का संविधान तथा भारत की सुरक्षा सर्वाेपरि है। हिजाब की आड़ में पहचान छुपने के कारण अराजक तत्वों को सुरक्षा मिलने की पूरी सम्भावना होती है।
अतः भारत संविधान के अनुसार ही चलेगा यह भारत की न्यायपालिका को निर्धारित करने का अधिकार है। सभी की हर मांग को पूरी करना न्यायपालिका की विवशता नहीं होनी चाहिए।
बुर्के को लेकर डॉ. अंबेडकर के विचार थे कि
– पर्दाप्रथा की वजह से मुस्लिम महिलाओं में दासता और हीनता की मनोवृत्ति बनी रहती है – डॉ. अंबेडकर
– पर्दाप्रथा की वजह से मुस्लिम नौजवानों में यौनाचार के प्रति ऐसी अस्वस्थ प्रवृत्ति का सृजन होता है जो आप्राकृतिक और अन्य गंदी आदतों और साधनों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है – डॉ. अंबेडकर
– पर्दाप्रथा के कारण मुस्लिम महिलाओं का मानसिक और नैतिक विकास भी नहीं हो पाता। – डॉ. अंबेडकर
विचारणीय है कि-
हिजाब के विरुद्ध प्रदर्शन करते हुए जो मलाला आतंकी की गोलियों का शिकार हुई थी वो भी आज हिजाब की हिमायती बनी हुई है।
कर्नाटक की हिजाब वाली युवती की कई फोटो अंग प्रदर्शन करते हुए कपड़ों में फेसबुक पर घूम रही है।
विचारणीय यह भी है कि
इस्लामिक जेहाद की शिकार हिन्दू लडकियां जो हिन्दू घरों में रहते हुए फैशन के नाम पर अर्धनग्न हो कर घूमती हैं और अपने से बड़ों की रोक- टोक को दकियानूसी सिद्ध करने में लगी रहती हैं ,पूजा पाठ को पाखण्ड बताती फिरती हैं,गीता रामायण को पढ़ना भी पसन्द नहीं करतीं वे भी मुसलिम समाज का हिस्सा बनते ही हिजाब,कुरान और पांचों वक्त की नमाज की हिमायती बन जाती हैं। उनकी फैशन परस्ती और हमारी ज़िन्दगी,हमारी मर्जी वाली सोच इस्लामिक कट्टरता की हवा लगते ही फुर्र हो जाती है।
काश कि हिन्दू घरों में भी रामायण और श्रीमद् भगवत गीता का पाठ तथा प्रातः और संध्यावंदन प्रत्येक के लिए अनिवार्य हो जाए उन्हें मानसिक और सामाजिक स्वतन्त्रता के नाम पर सब कुछ करने की छूट न दी जाए तो वे धर्म परिवर्त्तन और लव-जेहाद से बची रह सकें।
माना कि-
ठीक चुनाव के समय जन आक्रोश को भड़काने के लिए कभी हिजाब ,कभी आतंक ,कभी बलात्कार,कभी हिंदू मुसलिम का खेल खेलने वाले कुत्सित मानसिकता से ग्रस्त कुछ अवांछनीय तत्त्व कामयाब हो ही जाते हैं,फिर भी हमें अपने रहन -सहन पर ध्यान देना होगा और संस्कारों को सहेजते हुए मर्यादा की रक्षा करनी होगी तभी राजनीतिक कुचक्र के स्थान पर सर्वधर्म – समभाव भारत का गौरव बन सकेगा।