आलेख

‘दुर्गोत्सव’ पर चारामा का स्वर्णिम अतीत.. (मनोज जायसवाल,संपादक सशक्त हस्ताक्षर छत्तीसगढ़)

कहां गए वो दिन…..! कोई लौटा दे।
जिले के विकासखंड मुख्यालय चारामा में दुर्गाेत्सव के प्रथम दिन से ही क्षेत्र के लोगों की आयोजन लिस्ट बोर्ड के पास भींड़ जमा होती थी, वह इसलिए कि आने वाले नौ दिन में कौन कौन से कार्यक्रम होना है। लोगों द्वारा मुख्यतः छत्तीसगढ़ की प्रमुख चंदैनी गोंदा तथा कव्वाली को रट लिया जाता था। जिस दिन यह आयोजन होता चारामा की गलियां सड़कों में पैर रखने के लिए जगह नहीं होता था।
सड़कों के दोनों ओर सायकल स्टैंड हुआ करता था, जिसके ठेके में ही बेरोजगारों को काफी राजस्व की प्राप्ति मिलती थी। महानदी उस पार के क्षेत्र जेपरा,टांहकापार,अरौद,शाहवाड़ा तो कोटतरा,पुरी आदि क्षेत्रों की सड़कें रात रात भर लोगों की आवाजाही में व्यस्त होती थी। तब चार पहिया तो दूर मोटर सायकल भी गिनती के हुआ करते थे। खुब बारिश एवं धान की अपार पैदावार से किसानों में भी सम्पन्नता देखते बनती थी, जाहिर है किसान खुश होंगे तो साल भर के तीज त्यौहारों में उमंग उल्लास देखने मिलता था।
क्षेत्र दूरस्थ जगहों तक चारामा नव दुर्गोत्सव जो कन्या शाला प्रांगण में आयोजित होता के चंदा रसीद बुक धड़ाधड़ कटते थे। आयोजन और लोगों में जज्बा के चलते माता जी के नाम पर कभी लोगों ने पीछे नहीं हटा। सब अपने सामर्थनुसार चंदा राशि दिया करते थे। आमंत्रण पत्र महीने पूर्व ही बंट जाया करते। शहर दुर्गोत्सव पर बिजली की रौशनी में नहायी प्रतीत होती। जितनी आज के आधुनिक समय में कमी महसूस होता है।
कहां गए वो दिन…..! कोई लौटा दे। उस अतीत को। एक आज का दिन है जब चारामा ही नहीं लखनपुरी सहित क्षेत्र में वह रौनकता नजर नहीं आती। न ही युवाओं के बीच इस बात की चर्चा की किस जगह कौन सा आयोजन होना है। घर बैठे चैनलों की भरमार,कार्यक्रमों की छटा और रोजमर्रा की व्यस्ततम दिनचर्या,युवाओं में बेरोजगारी बारिश न होने से अकाल की छाया और नये तकनीक का कमाल कि बड़े आयोजनों में भी उतनी भींड़ नहीं जुटती।
दूसरी बात यह कि आज आयोजनों के लिए शहर नहीं रह गया है, आज तो कई बड़े कार्यक्रम गावों में भी आयोजित किए जाते हैं जहां भी आशानुकूल भींड़ नहीं जुटती तो शहर की बात छोड़ दें।चारामा विकासखंड की माटी से प्यार करने वाले लोग चाहे जहां कहीं भी हों इस माटी की सौंधी महक की खुशबू लेने जरूर इस पवित्र नवरात्रि के त्यौहार में आने उत्सुक रहते हैं। उन्हें किसी भी प्रकार के निमंत्रण देने की भी आवशयकता नहीं पड़ती।

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