कविता

जिम( हास्य-कविता) श्रीमती झरना माथुर साहित्यकार,गायिका देहरादून उत्तरांचल

जिम( हास्य-कविता)

कुछ ऐसी हवा चली है,
बॉडी को बनाने की।
चाहत है बज़न घटाना,
मर्द जिम जा रहे हैं।

घर मे वो कुछ न करते,
बस हुक्म ही बजाते,
अब जिम मे जाकर वो,
भार उठा रहे है।

कारो में वो है चलते,
ज़मी पे पैर न रखते,
शेप मे होने के लिये,
पुश अप वो लगा रहे हैं।

दाल रोटी न रास आता,
पिज़्ज़ा वर्गर ही भाता,
केलौरी के चक्कर मे उलझे,
अण्डे चिकन ही खा रहे है।

सुन लो ए घर मे बैठी,
तुम सब मोटी बहनों,
अब तुम भी कमर को कस लो,
पति हाथ से निकलते जा रहे है।

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