जिम( हास्य-कविता)
कुछ ऐसी हवा चली है,
बॉडी को बनाने की।
चाहत है बज़न घटाना,
मर्द जिम जा रहे हैं।
घर मे वो कुछ न करते,
बस हुक्म ही बजाते,
अब जिम मे जाकर वो,
भार उठा रहे है।
कारो में वो है चलते,
ज़मी पे पैर न रखते,
शेप मे होने के लिये,
पुश अप वो लगा रहे हैं।
दाल रोटी न रास आता,
पिज़्ज़ा वर्गर ही भाता,
केलौरी के चक्कर मे उलझे,
अण्डे चिकन ही खा रहे है।
सुन लो ए घर मे बैठी,
तुम सब मोटी बहनों,
अब तुम भी कमर को कस लो,
पति हाथ से निकलते जा रहे है।