
”वैवाहिक बंधन की गांठ लगी”
जीवन के इस वसंत पर मिल रहे कुछ नए अनुभव।
वैवाहिक जीवन के वसंत में जुड़ गए कुछ नए अनुभव।।
दो दशकों के इस डगर पर मिल रहे कुछ कटु मृदु एहसास।
परिवार और समाज की गाड़ी दिये जा रही कुछ कटु मृदु एहसास।।
जब डोर बंधी थी भावना संग तब लगता था कठिन राह।
मन भावना को समेट कर साझा चलने का कर रहा प्रयास।।
फिर आपस की समझदारी और प्रशस्त पथ की मन में चाह।
रजत वर्षगांठ से पीछे अब दो कदम हीं बचे हैं खास।।
बेसक जीवन माला से कम हो रहे साल दर साल।
लेकिन लगता जा रहा है अगला जीवन होना है खास।।
शिकवा और शिकायत की बातें चलती रहेगी सालों साल।
आपस के सामंजस्य को बैठाकर ही चलना होगा साल दर साल।।
कुछ मन की चाहत है बाँकी उसको पूरा करने का लक्ष्य।
समाज और परिवार संग मिलकर चलना बना रहे यही लक्ष्य।।
एक कहानी छूट जाएगी अपनी जीवन जीने के बाद।
परिवार और समाज मे रह जाएगी बस अपनी कुछ पुरानी याद।।
कल जब धरा छोड़ने की बारी आये पहले जाने में न एतराज।
फिर भी हक़ की लड़ो लड़ाई साथ चलने में न कोई एतराज।
साथ साथ चलकर हीं वहाँ बने एक स्वप्नलोक।
खिड़की और झरोखों से हँसता खेलता दिखे अपना ये भूलोक।।