कविता

”वैवाहिक बंधन की गांठ लगी” श्री कमलेश झा साहित्यकार भागलपुर बिहार

साहित्यकार परिचय : श्री कमलेश झा
जन्म :  01 मार्च 1978 जन्म स्थान नगरपारा भागलपुर
माता,पिता: श्री कैलाश झा   श्रीमती  महाविद्या देवी
शिक्षा : एम बी ए मार्केटिंग इलेक्ट्रॉनिक ग्रेड्यूएट
प्रकाशन  :नई सोच नई उड़ान काविता माला,पापा एक याद  vol 1 से vol 7 तक  प्रिंसिपल ऑफ मैनजमेंट, और डिसीजन मेकिंग प्रोसेस एंड तकनीक
सम्प्रति : लेखन के कार्य से जुड़ा हुआ, देश के विभिन्न प्रान्तों से प्रकाशित अखवारों में करीब 8 दर्जन काविता का प्रकाशन
संपर्क 9990891378  मेल  Kamleshjha1378@gmail.com

 

”वैवाहिक बंधन की गांठ लगी”

जीवन के इस वसंत पर मिल रहे कुछ नए अनुभव।
वैवाहिक जीवन के वसंत में जुड़ गए कुछ नए अनुभव।।

दो दशकों के इस डगर पर मिल रहे कुछ कटु मृदु एहसास।
परिवार और समाज की गाड़ी दिये जा रही कुछ कटु मृदु एहसास।।

जब डोर बंधी थी भावना संग तब लगता था कठिन राह।
मन भावना को समेट कर साझा चलने का कर रहा प्रयास।।

फिर आपस की समझदारी और प्रशस्त पथ की मन में चाह।
रजत वर्षगांठ से पीछे अब दो कदम हीं बचे हैं खास।।

बेसक जीवन माला से कम हो रहे साल दर साल।
लेकिन लगता जा रहा है अगला जीवन होना है खास।।

शिकवा और शिकायत की बातें चलती रहेगी सालों साल।
आपस के सामंजस्य को बैठाकर ही चलना होगा साल दर साल।।

कुछ मन की चाहत है बाँकी उसको पूरा करने का लक्ष्य।
समाज और परिवार संग मिलकर चलना बना रहे यही लक्ष्य।।

एक कहानी छूट जाएगी अपनी जीवन जीने के बाद।
परिवार और समाज मे रह जाएगी बस अपनी कुछ पुरानी याद।।

कल जब धरा छोड़ने की बारी आये पहले जाने में न एतराज।
फिर भी हक़ की लड़ो लड़ाई साथ चलने में न कोई एतराज।

साथ साथ चलकर हीं वहाँ बने एक स्वप्नलोक।
खिड़की और झरोखों से हँसता खेलता दिखे अपना ये भूलोक।।

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