
”बाँट रहा है तुमको”
बाँट रहा है तुमको वह जाती धर्म के खाई में ।
तुमको अपना सगा बताकर धकेल रहा है खाई में।।
अपना उल्लू साधने में तुमको उल्लू बनाना ।
उस उल्लू के पीछे लगकर हमें उल्लू क्यों बनना।।
दोधारी तलवार चलता काटता जाता हम जनता को साथ।
कभी मक्कारी वाली चुस्की या लगाजाता घुड़की भी साथ।।
रूप मुखोटा इसने डाला है जिसके लगे हैं कई परत।
एक मुखोटा निकल भी जाए इसको क्या पड़ता फर्क।।
कभी विकास तो कभी खुशहाली का दे जाता वह वादा खास।
दशक दशक का समय निकाल कर अपना ही घर भारता खास।।
अगड़ा पिछड़ा का खेल खेलकर बढ़ता है सामाजिक तकरार।
इसके इस गंदे खेल का शिकार हो जता है भोली जनता मात्र।।
कभी पहनाता जाली टोपी कभी लगता टिका खास।
मौका परस्ती का ये सीधा उदाहरण जनता को ठगता है खास।।
मत आना इसके बातों में मत फँसना इसके जाल में आप।
अच्छे बुरे का अंतर करना मत झेलना जाती उन्माद।।
ये सब है बस एक थाली के कोई बैगन तो कोई मिर्ची मात्र।
समय समय पर भरता करना अपने ही स्वाद अनुसार।।
तब इसको एहसास कराना आप हीं हो सरकार।
बेसक इसकी बड़ी सी गाड़ी लेकिन चलेगी आपके इसारे मात्र।।