साहित्यकार परिचय- माधुरी डंडसेना उपनाम ‘मुदिता’
जन्म- 21 अगस्त 1971 भखारा(छत्तीसगढ़)
माता-पिता- श्री कन्हैया लाल डंडसेना,श्रीमती यशोदा सिन्हा
शिक्षा –– एम. ए. हिन्दी साहित्य , बी. टी.आई. पी.जी .डी .सी .ए., गीतांजलि संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ ।
प्रकाशन-मधुबेला (गद्य संकलन)माधुरी मंजरी(दोहा संकलन )माधुरी मंजूषा (सोरठा संकलन )माधुरी मुक्तक (कुण्डलियाँ संग्रह )माधुरी मंथन ( मुक्तक संग्रह )माधुरी मन्त्रणा (घनाक्षरी संग्रह ) साहित्यिक संकलन-मेरी धरती मेरा गाँव, चलो गाँव की ओर , हाइकु साँझा संकलन गुंजन , भाग कोरोना भाग ई बुक संकलन , सावन ईबुक (अनन्त आकाश हिंदी साहित्य संसद )साझा संकलन – काव्य कौशल।
सम्मान- दोहा रत्न सम्मान , काव्य गौरव सम्मान , दोहा पंडित सम्मान, साहित्य श्री अलंकरण सम्मान , सोरठा शतकवीर सम्मान , श्रेष्ठ समीक्षक सम्मान , दैनिक सृजन सम्मान , कलमकार सम्मान , मुक्तक शिरोमणि , श्रेष्ठ समीक्षक सम्मान , सहभागिता सम्मान , देश के विभिन्न पटलो में साहित्यिक सक्रियता, समाचार पत्रों में नियमित। सामाजिक उपलब्धि-डॉ अम्बेडकर गौरव सम्मान , श्रेष्ठ मंच संचालन के लिए -रामसलोनी सम्मान , उत्कृष्ठ संचालन हेतु पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमनसिंह के द्वारा सम्मानित , अखिल भारतीय गोरक्ष सारस्वत समारोह उज्जैन में काव्य शिरोमणि सम्मान , रामायण मंच का उत्कृष्ठ मंच संचालन सम्मान। प्रकाशित।
सम्प्रति- उच्च श्रेणी शिक्षक, मा .शा देवरी
संपर्क– ग्राम- पोस्ट नगर पंचायत भखारा, जिला- धमतरी , वि.ख.- कुरूद , (छत्तीसगढ़ ) पिन कोड – 493770
मोबाइल नम्बर – 9993747934,7987116957
ईमेल- madhudadsena71@gmail.com
वागीश्वरी सवैया(सात यगण+लघु गुरु)
‘विविधा’
उठो लाल मेरे प्रभाती की बेला
अभी स्वर्ण की रश्मियाँ जागते ।
सुनो पंछियों ने नये गीत गाये ,
धरा देख संगीत को साजते ।।
अभी त्याग आलस्य नहालो दुलारे
पढ़ाई लिखाई करो नाचते ।
सभी तो तुम्हारे लिए हैं दुलारे ,
खिले पुष्प देखो तुम्हें वारते ।।
नमों हे भवानी नमो श्री प्रदाता ,
करूँ वंदना शुभ्रता शारदे ।
भरो ज्ञान गंगा कृपा हो तुम्हारी ,
सदा सर्वदा सत्य का सार दे ।।
पिपासा बढ़ी है हमें भी उबारो ,
महाजाल संसार उद्धार दे ।
तुम्हीं से सहारा तुम्हीं से किनारा ,
अलंकार श्रृंगार विस्तार दे ।।
नये भोर की गीत तू माधुरी है ,
जले दीप ले शुद्ध हो भावना ।
महा मोहिनी चित्त चैना सुहानी ,
हितैषी सदा सर्व की साधना ।।
मिले सिद्धता बुद्धता जिंदगी को ,
वही प्राणदा एक ही प्रार्थना ।
प्रभाती स्वयं की प्रभा नूर है वो ,
निहारो निखारो सधे कामना ।।
तुम्हीं से सहारा तुम्हीं से किनारा ,
अलंकार श्रृंगार विस्तार दे ।।
नये भोर की गीत तू माधुरी है ,
जले दीप ले शुद्ध हो भावना ।
महा मोहिनी चित्त चैना सुहानी ,
हितैषी सदा सर्व की साधना ।।
मिले सिद्धता बुद्धता जिंदगी को ,
वही प्राणदा एक ही प्रार्थना ।
प्रभाती स्वयं की प्रभा नूर है वो ,
निहारो निखारो सधे कामना ।।