कविता

”सुरता के छंइहा” श्री महेन्द्र कश्यप ‘राही’ वरिष्ठ साहित्यकार छाती,कुरूद धमतरी छ.ग.

साहित्यकार परिचय-डाॅ. महेन्द्र कश्यप ‘राही’
जन्म- 25 सितंबर 1933 ग्राम तरेसर,थाना-धरसींवा,जिला-रायपुर(छत्तीसगढ़)
माता-पिता – स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.श्री भुजबल सिंह कश्यप, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व.श्रीमती बेला बाई कश्यप

शिक्षा- एल.ए.पी.(आयुर्वेद)
प्रकाशन- स्थानीय पत्र पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन
सम्मान- छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग सहित विभिन्न साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।
उपाध्यक्ष-जनवादी लेखक संघ की भेल इकाई।
सम्पर्क- ग्राम.पो.-छाती(कुरूद) जिला-धमतरी(छत्तीसगढ)

 

 

”सुरता के छंइहा”

जिनगी कतेक का हे चन्दा
पाख कस अंधियारी अंजोरी
बर तरी गोठियाएन बतियाएन
आंसू बोहाएन बोहार तरी

कुकरा बासिस, समझेन बिहान भइगे
नई जानेन हमर तोर भाग के रचना
हाट के दुकान में बिसाएन सौदा
समझेन जीए बर! लिखे रिहिस मरना

रेंगत रेहेन रस्ता,सोचत हम पाबो-
पूर्ण विराम जिहां बैठ के सुरताबो
कहां ले आगे हाय, काल के बड़ोरा
नई जाने पाए, संग रहिके दुरिहाबो

रस्ता सब उरभट भइगे, लहुटे करवाही
बंजर में फूले परसा अइला के झरगे
लेवना जमे तोर पांच में सपना देखेंव
डूमर कस फर फोरा परगे

पता नहीं कहा होबे कइसे होबे राही
का जानी अइसे बेरा में तोर मन कतका बंबाही
कभू रस्ता रेंगत तन थक के पांव भर जाही
अऊ कभू तोर बिसराए सुध ला मोर सुरता आही।

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