आलेख

घरेलू कीचन से बफे में जिमीकंद की धमक (मनोज जायसवाल)

छत्तीसगढ़ के बस्तर में मिलने वाली देशी खाद्य चीजों में जिमीकंद भी मुख्य है। जिसकी सुदूर अंचलों में अच्छी उत्पादन होती है। यह बिना किसी कीटनाशक के पूर्ण रूप से प्राकृतिक कंद है। हालांकि बाजारों में काफी मांग के चलते इसका वैज्ञानिक विधि से उत्पादन प्रारंभ हो चुका है।
शासन की महती गौठानों में भी कई महिला समितियां इसके उत्पादन पर ध्यान दे रही है। बस्तर में अन्य देशी वस्तुओं की तरह अब वो दिन नहीं रहा कि सस्ते में यह सब उपलब्ध हो। दूरस्थ शहरों से लोग यहां आते हैं और यहां की इस कीमती देशी चीजों को सीधे उत्पादक से खरीदने का प्रयास करते हैं। लेकिन चुंकि व्यावसायिकता ने यहां भी जड़ जमा लिया है।
अधिक दामों में उपलब्ध कराने की सोच से स्थानीय जगहों पर भले ही न मिले पर शहरों में अधिक दामों पर जरूर उपलब्ध हो जाता है। जिमीकंद जो कल तक सिर्फ स्थानीय लोगों के खाने में हुआ करता था, पर आज शादी विवाह आयोजनों में एक आयटम जिमीकंद का रखा जाने लगा है। अपने स्वाद के चलते बफे सिस्टम में भी इसकी धमक बढ़ती जा रही है,यही कारण है कि इसके दाम भी बढ़ते गये हैं। बस्तर क्षेत्र के गावों में इसे अपनी बाड़ी के किनारों किनारों तथा अब खेत की मेड़ों पर लगाया जाता है।
यानि कि जिस जमीन पर अन्यत्र चीजें नहीं लगा सकते वहां जिमीकंद लगा दिया जाता है। बरसात में स्वयं पलता बढ़ता रहता है,कोई विशेष देखरेख की जरूरत नहीं पड़ती। देश के कई हिस्सों में सुरन बोला जाने वाला कंद जिसे अपने यहां इसे जिमीकंद के नाम से जाना जाता है।दर असल हिंदी में इसे सुरन कहा जाता है। वस्तुतः यह भुमिगत तना का रूपांतरण है। भूमिगत कंद सब्जी ही नहीं वरन यह स्वाथ्य को लाभ दिलाने वाली बुटी भी है। सतह पर अपस्थानिक जडें देखने मिलती है।
ग्रामीणों से बिचौलिए 10 रूपये किलो में खरीदते हैं जिसे वे पुनः 12 से 15 रूपये किलो में बाजार में ही बेचते हैं। अधिकतम 30 किलो से भी अधिक वजनी तक ये पाये जाते हैं। चारामा से लखनपुरी एवं कांकेर से केशकाल घाटी के नीचे सडकों पर ग्रामीण महिलाओं को सीताफल के साथ बेचते देखा जा सकता है। अब सीताफल की सीजन तो समाप्त हो गया पर जिमीकंद जो अपनी बाड़ी से लेकर राजमार्ग में बेचती है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो जिमीकंद में महत्वपुर्ण खनिज पाये जाते हैं। जिसमें तांबाॉ सेलेनियम, फास्फोरस,जस्ता,पोटेशियम एवं मैग्नीशियम हैं।कोलेस्ट्राल को कम करने में यह सहायक है। पाचन की समस्या दुर होती है। वजन कम करने गठिया, शुगर, लीवर साफ करने सहित बवासीर एवं कैंसर में लाभदायक है। लेकिन जो लोग ठंड सायनस अस्थमा के मरीज हैं उन्हें इसका सेवन कम या नहीं करना चाहिए। ठाक्टर की सलाह लेनी चाहिए। आयुर्वेद में किसी भी प्रकार के चर्म एवं कुष्ट रोगों से ग्रसित लोगों को मनाही होती है।

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