आलेख राज्य

हमारी संस्कृति,हमारी विरासत (मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग. )

-पैसे उड़ाती परंपराओं से दूर छ.ग. में लोक सांस्कृतिक मंच
हां, हमें पता है कि छत्तीसगढ़ कला जगत के उदीयमान काल में जब नाचा पार्टी का आयोजन प्रमुखता से लोगों के मनोरंजन का साधन हुआ करता था। नाचा पार्टी में पुरूष कलाकार जो महिला के रूप में चरित्र अभिनय करता था। इनके अभिनय से खुश होकर दर्शकाें के बीच से कोई अपने पास सीटी मार कर बुला लेता था,जहां पहूंच कर उनके बताए नाम और फरमाईश के अनुसार गीत प्रस्तुत करना होता था।
नाचा आयोजन धीरे धीरे कम होता गया और इसी के साथ इस प्रकार की परंपराएं भी खत्म सी होती चली गई। छत्तीसगढ़ में इसी के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने जोर पकड़ा। आयोजन की शुरूआत यहां की संस्कृति एवं परंपराओं मुताबिक माॅं सरस्वती की आराधना से। आयोजन समिती मुताबिक उनकी कुछ फरमाईशें जरूर गीत संगीत में पूरी की जाने लगी पर जिस तरह उस पडाेसी प्रदेश के आयोजनों में गायिका,नायिका की प्रस्तुती देते पैसे उड़ाऊ वाली बातों से छत्तीसगढ़ कोसों दूर है। सीधे शब्दों में कहें तो किसी गीत पर पैसे उड़ाते फरमाईश करने वाली संस्कृति यहां नहीं है। आत्म स्वाभिमान की सशक्त कड़ी देखना चाहें तो मेरे बातों पर यकीं करें ना करें स्वयं किसी भी आयोजन देख कर अंदाजा लगा सकते हैं।
हमारी कला जगत के कलाकार ग्रुप सहित हर जगह उपस्थित हैं, स्वयं पूछ सकते हैं। पडाेसी कला जगत में जैसे द्विअर्थी फूहड गीतों का प्रचलन पैदा किए जाने की शुरूआत जरूर हुई पर छत्तीसगढ़ की जनता ने स्वयं ऐसा नकारा कि अब इस प्रकार के गीत धरातल पर कोई सुनना पसंद नहीं करता। लोकगीतों पर यहां के अमूमन नेंग रस्म निभाये जाते रहे हैं, जिस पर पारंपरिक परिधान भी अहम रखता है। यही कारण है कि छत्तीसगढ़ में सांस्कृतिक आयोजनों में लोक गायक,गायिका,नायक,नायिका की श्रृगार,सजावट परिधान अनुकूल होते हैं।
चकाचाैंध की ग्लैमर्स दुनियां में किसी भी आधुनिक परिधान में प्रस्तुतियां नहीं दी जाती।आज छत्तीसगढ़ की कोई भी सांस्कृतिक मंचों में या अन्यत्र सार्वजनिक आयोजनों में आपको सुनाई देने वाली लोकगीतों की लोकधुन ही सुनकर आप कायल हो जाएंगे। अत्याधुनिक वाद्य यंत्र के चलते अतीत के दौर और वर्तमान में काफी कुछ बदलाव देखने मिलता है।

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