आलेख देश

मां अन्नपूर्णा के दिए प्रसाद का अपमान क्यों?(मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग.)

 
इसे उनकी बेशर्मीयत कहें, आदत से लाचार कहें या अंतस से हम कोसते रहें कि जो शिक्षित साभ्रांत होने का दंभ भरते हैं और कईयों तो आज के सोशल मीडिया पटल पर पढते और चिंता जताते दूसरों को नसीहतें देते नजर आते हैं कि थाली पर जूठा ना छोड़ें। इनके चिंतनीय आलेख में देश में कई गरीब तबका बमुश्किल दो वक्त की रोटी जुगाड़ पाता है तो देश में कई लोग भूखे पेट सोते हैं।
कुछ सामाजिक संस्थाएं रोटी बैंक तो कई अन्य तरह-तरह के माध्यम से भोजन एकत्र कर जरूरतमंद गरीबों की पेट तृप्त करने मानवता की सेवा में भी लगी होती है। फिर क्यों ये चिंताए व्यक्त करने करने वाले कुछ नुमाइंदे आज शादी विवाह में होने वाली पार्टियों में जूठे छोड़ते देखे जा सकते हैं। भोजन की प्लेट में ऐसा करना वो अपनी शान समझते हों या कुछ और दिखाना चाहते हों यह तो वे ही जाने पर मां अन्नपूर्णा के दिए इस प्रसाद का इस तरह अपमान कतई उचित नहीं कहा जा सकता।
खुद यदि पिता हों तो किन-किन तकलीफों से अन्न हमारी भोजन की थाली तक पहूंचता पाता है,यह बताने की जरूरत नहीं है ना ही जरूरत पड़नी चाहिए। सामाजिकता में विपरीत स्थितियां देखने मिल रही है। कम पढ़े लिखे जिन्हें पिछड़ा कहा जाता है उनकी जागरूकता देखिये किस तरह अन्न का सम्मान करता है और शिक्षित कहे जाने वाले कुछ लोगों में अन्न की बर्बादी के प्रति आज भी बर्बादी का आलम उनके इस प्रकार रवैये से पता चलता है। इन दिनों शादी पार्टी शुरू हो चुकी है और जरूरत से अधिक भोजन लेकर इस प्रकार व्यर्थ की बर्बादी देखी जा सकती है। जरूरत सबको अन्न की इस तरह बर्बादी पर ध्यान देने की है।

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