
2002 का दशक नवोदित छत्तीसगढ़ राज्य में सफल फिल्मों के लिए जाना जाएगा। इस दौर में जो जुनून दिखा वह अब नहीं। हालांकि 2003के दशक में कई छत्तीसगढ़ी फिल्में फलाप क्या डिब्बा बंद भी हुई । मध्यांतर में फिल्म निर्माण भले ही कम हुआ हो पर कई एलबमों का दौर भी चला जिसमें कई एलबम सुपरहिट हुए। कुछ निर्माता भोजपुरी फिल्मों के मुताबिक बाहरी कलाकार एवं स्टोरी में वह मसाला भरने का भरसक प्रयास किया।
पर छत्तीसगढ़ में दर्शकाें ने एक सिरे से नकार दिया और मसालेदार अंग प्रदर्शन वाली फिल्माें से क्या एलबमों को भी असफलता का मुंह देखना पड़ा। यहां से छत्तीसगढ़ के कई नव निर्माता निर्देशकों ने वह प्रयोग ही भूला दिया। जिसके चलते अब इसके बाद का जो दौर आया उसमें कुछ फिल्में हिट हुई। कहां पहले पहल का भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री और कहां हमारा छत्तीसगढ़ राज्य का छालीवुड।
लेकिन इस बात को यदि गौर किया जाय तो अल्प समय में जिस प्रकार से कला जगत में इंडस्ट्री स्थापित हो रही है और स्वच्छ परिवारनुकूल देखने लायक फिल्में बनायी गयी है,वह काफी है। निचले स्तर पर यु-ट्युब से लेकर ऊपरी स्तर तक कई युथ इस क्षेत्र में आकर सषक्त काम को अंजाम दे रहे हैं। यह भले ही पता न चले किंतु कटू सत्य है कि कई युवा कला संगीत के दीवाने हैं,जिन्होंने अपनी परिकल्पना और स्वयं की लिखी स्टोरी से छत्तीसगढ़ के दूरस्थ सुदूर गावों तक में शुटिंग कर कई एलबमों का निर्माण किया है।
उनके इस जोश के पीछे अपनी आजीविका तो है,साथ ही छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति के प्रति अपार स्नेह अवगत कराता है। मसालेदार प्रदर्शन के दौर में घाटे में जा चुके कुछ निर्माता यहां के दर्शकाें की चाह मुताबिक साफ सुथरी फिल्मों के निर्माण पर मुख्य ध्वेय रख रहे हैं। दर्शकाें का बालीवुड की तरह यह पसदं करने की बात काे मिथ्या साबित कर देते हैं फिल्म के रिलीज अवसर पर ही बात का पता चल जाता है कि किस तरह छत्तीसगढ़ के दर्शकाें ने नकार दिया है, वे चाहते हैं साफ सुथरी पारिवारिक,सामाजिक फिल्में बने। करोना काल के चलते हालांकि कार्य विराम पर है, लेकिन कलाकारों का मानना है कि छत्तीसगढी फिल्में हमेशा अन्य प्रदेशाें में फलाप होती आंचलिक फिल्मों के लिए एक नई दिशा देने वाली होगी।