
-तस्लीमा विवादग्रस्त हुई तो क्यों जानने जरूर पढेंगे साहित्य।
संगीत एवं लेखन को इससे जुड़े लोग अपनी साधना मानकर चलते हैं। यही कारण है कि वे हमेशा अपने आजीविका के कार्य करते हुए भी इन क्षेत्रों में मुखर रहते हैं। इसके लिए कोई विशेष रूप से समय नहीं निकाला करती। उतना ही वे सोशल मीडिया पटल पर मुखर होती है।
सबसे अहम बात कि देश की कई बेटियां अमेरिका तथा अन्य देशों में रहते साहित्य लिख रही है,जो भारतीय मूल की लेखिका के नाम जानी जाती है। यहां कितनों को गिनाएं। साहित्य है ही मुखर रहने का जिस पर समाज का भार है। साहित्यकार अगर सोए हुए हैं तो उन्हें कैसे साहित्यकार मानें। कभी कभार कोई रचनाएं लिखते हुए अपने नाम के आगे साहित्यकार लिखना बहुत सरल है,लेकिन समय ना मिलने के नाम पर बड़ी बड़ी बातें करने से मंजे साहित्यकार,वरिष्ठ साहित्यकार नहीं माना जा सकता।
इसके लिए तो आपकी अनवरत साधना चाहिए। जैसा हम अपनी रोजमर्रा के कामों में लिप्त होते हैं ऐसा ही आपकी कला उनसे दूर होने नहीं देती चाहे संगीत हो या साहित्य। समाज में विषमताएं हो वर्तमान जीवन में घटनाएं घट रही हो उन सारे विषयों को देख कर कैसे कोई साहित्यकार चुप रह सकता है? तस्लीमा नसरीन जैसी बेटियां भले ही साहित्य जगत में विवादास्पद हुई लेकिन उन्होंने अपनी स्वतंत्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से मुखर होते अभिव्यक्त करती रही।
तमाम विरोध के बावजूद उन्होंने हार नहीं माना और न कभी समय नहीं मिलने का बहाना नहीं किया। यही कारण है कि उनका नाम इतिहास में दर्ज हो गया और भले ही विवादास्पद हुई उन साहित्यों को खोज कर चाव से पढ़ा जाता है,इसलिए भी कि आखिरकर वो विवादग्रस्त क्यों हुई। पुस्तक से लेकर आज का दौर काफी बदल चुका है। अब वो पुस्तक पाठन का दौर न रहा हो पर वेब की दुनियां में वक्त के साथ रचनाकारों ने भी अपने को ढालना उचित समझा और रचनाएं आज तमाम पोर्टल वेब अखबारों में प्रकाशन के साथ मुखर है और पहचान भी बनी हुई है।
प्रतिदिन टीवी चैनलों पर आने वाले विज्ञापन को कितना ही नजरअंदाज करें लेकिन जब आप शापिंग में हो तो जरूर सोचेंगे कि चलो तो इसे ले लिया जाए। प्रयोग करके देख लिया जाय। डिटरर्जेंट के विज्ञापन में पहले इस्तेमाल करे फिर विश्वास करें की बातें भी नीले पर्दों से आपके मस्तिष्क पटल में भर जाती है। कि कैसे महिला महान अभिनेता अमिताभ बच्चन से कहती है, सर! मेरे पास भी घड़ी है। सोशल पटल में बने हों तो आप भी लोगों की जेहन में हैं। दूर जाएंगे तो खुद अपने को दूर पाएंगे। ऐसा भी न हों कि लोग पहचानने से भी रहे। तमाम वो बातें हैं,जिसका सीधा सा जवाब है कि पत्रकार,साहित्यकार को हमेशा मुखर रहना है तभी तो आप साहित्यकार पत्रकार हैं, वरना बाद का विषय मानेंगे तो बताने की जरूरत ही नहीं है।