
अब बारी है,बस्तर में मेले की। 8 से 10 दिसंबर तक राष्ट्रीय राजमार्ग 30 में स्थित राजाराव पठार में वीर मेला का आयोजन होने जा रहा है। प्रकृति उपासक पुत्रों द्वारा देवी देवताओं की पूजा अर्चना पश्चात आयोजन प्रारंभ होगा जहां हर वर्ष तमाम वीआईपी अतिथियों का आगमन होता है। इस वर्ष भी छत्तीसगढ़ की राज्यपाल महामहीम अनुसुईया उइके का आगमन होने जा रहा है। गौरवान्वित महसूस करते हैं यहां के वाशिंदे जहां परंपराओं का अनुठा स्वरूप देखने मिलता है। आप भी जरूर आनंद लें।
बताते चलें आप बस्तर अंचल आकर यहां के मेले का आनंद नहीं उठा पाए तो तो कुछ नहीं देखा। बस्तर संभाग में मेले मंडईयों का दौर अब प्रारंभ हो गया है। आज जब लोग आधुनिक जीवन जी रहे हैं जहां घर बैठे सभी अत्यावश्यक सामान हमें आनलाईन शापिंग के जरीये मिल रहा है, बावजूद इसके यहां मेले मंडईयों की महत्ता कम नहीं हुई है, और ना होगी। अतीत से यहां आज भी सुदूर अंचलों के मेलों में सोना चांदी तो कांस्य के बर्तन की खरीदी करना शुभ माना जाता है, तो मेला दो परिवारों को मिलाने का एक मुख्य केंद्र भी है,जहां विवाह योग्य युवक युवतियों के मेल मिलाप तो रिश्ते स्थापित करने में महती भूमिका का निर्वहन निभाते रहे हैं।
आज समाज में जहां मिलन समारोह का आयोजन होता है लेकिन वहां भी जोड़ियां आशाओं से कम ही बनती है,लेकिन बस्तर के अंचलों में आज भी कम से कम तीन दिनों तक मेले के आयोजन का असर कहें कि वैवाहिक रिश्ते स्थापित होते रहे हैं। वार्षिक मेले का इंतजार न सिर्फ स्थानीय वाशिंदों को अपितु दूरस्थ अंचल सहित विदेशी सैलानियों द्वारा यहां की संस्कृति एवं परंपराओं को देखने जानने का एक मुख्य केंद्र होता है। डांग डोलियों माता शीतला की पूजा के साथ देव मेले का आनंद लोगों ने विभीन्न आवश्यकता की वस्तुएं उपलब्ध कराने तथा सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से मनोरंजन का केंद्र भी है।
बस्तर में संभाग में मेले की शुरू आत बस्तर के प्रवेश द्वार कहे जाने वाले अरौद के मेले से शुरू होती है। लेकिन पक्ष के चलते अरौद से भी पहले इसी क्षेत्र के कुछ गांव में मेला शुरू हो जाता है। इस बार 10 दिसंबर से बस्तर संभाग के इस कांकेर जिले अंतर्गत चारामा विकासखंड के ग्राम अरौद से मेले की ऐसी शुरूआत हो रही है, जिसके बाद नियमित रूप से हर दूसरे रोज कई गावों के सेंटरों में मेला का आयोजन होगा। इसके बाद समीपस्थ गांवों सहित यह हल्बा,नरहरपुर,लखनपुरी,चारामा,गोविंदपुर,कांकेर,केशकाल,भानुप्रतापपुर सहित कई अन्य जगहों पर मेला का समापन होता है। मेला के बाद यहां वैवाहिक आयोजनाओं का दौर प्रारंभ होता है। आप जहां भी रहते हैं आप भी जरूर आयें बस्तर अंचल के गावों के मेला मंडईयों का आनंद लेने।
मेला सीजन में भी वैवाहिक लग्न होने से आप यहां के अप्रतिम रीतिरिवाजों से ओतप्रोत विवाह में अनुठी परंपराओं के बीच पाणिग्रहण का रस्म देख सकते हैं। छत्तीसगढ़ की शादियों में इस पाणिग्रहण पल को देखने के विदेशी मेहमान भी कायल होते हैं। कई जगह इन विदेशी मेहमानों को छत्तीसगढ़ की परंपरा मुताबिक थाली में आरती के बीच फूल अर्पित करते चरण धोकर प्रणाम करते अपनी अद्भूत परंपरा के साथ स्वागत किया जाता रहा है।
यही नहीं बस्तर क्षेत्र में होने वाली शादी विवाह में भी आज कल आधुनिकता के दौर में भी किस तरह परंपरा का अनुठा निर्वहन करते हुए किस प्रकार सुंदर स्वागत गेट का निर्माण किया जाता है,यह आप स्वयं देख लें। वीर मेला स्थल पर तो स्थायी रूप से आदिवासी संस्कृति को समेटे हुए स्वागत गेट का निर्माण जाता है।