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‘ऐसा है हमारे लोक जीवन में लोक कला’ श्री मनाेज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छत्तीसगढ

हमका घेरी बेरी भूर भूर निहारे वो बलमा पान ठेला वाला छत्तीसगढ़ लोक जीवन के लोक कला क्षेत्र में यह वो प्रथम गीत था जो इसी लोकजीवन में पान ठेला पर सुरबद् किया गया था। तब अनुराग चाैहान दीदी ने इसे अपनी सुरमयी आवाजों से ऐसा गाया कि तब के जाने माने मंच चंदैनी गोंदा ही नहीं गली गली ये गीत गुंजा करते थे। हालांकि इस दौर में कई अन्य गीतों ने भी अपना स्थान बनाया। सिर्फ गीत ही नहीं हर शब्द हर पंक्तियों के अर्थ होते थे।
दौर में छत्तीसगढ़ी लोक जीवन में एक गीत लीम के डंगाली चघे हे करेला के नार, ठगुवा कस पानी ठगे हे मुड़ धर बइठे किसान ये विधाता गा मोर कईसे बचाबो परान,संगवारी का मोर कइसे बचाबो परान जैसे गीत भी मंच अपितु आकाशवाणी एवं आयोजनों में गुंजते। पान ठेला वाले गीत जब भी बने काफी प्रसिद्व हुए। दौर में ऐ पान वाला बाबू..जैसे गीत भी खूब छाए रहे। कम्प्यूटर आवाजों के दौर में सीमा कौशिक की टूरा नइ जाने ने एक नया अध्याय रचा। म्युजिकल वाद्य यंत्रों के चलते यह न छत्तीसगढ़ अपितु देश विदेश में पसंद किया गया। अनुराग जी की चिटिक अंजोरी  निर्मल छंइया, गली गली बगराये वाे पुन्नी के चंदा मोर गांव मा…।
बात जब अनुराग चाैहान ठाकुर जी की हो रही है तो धनी बिना जग लागे सुन्ना..का जिक्र कैसे नहीं होगा। छत्तीसगढ़ी लोकजीवन को लेते इस गीत ने दौर को स्वर्णिम बना दिया। आकाशवाणी रायपुर से दर्शकों ने फरमाईशी कार्यक्रम में हमेशा इससे सुनने का जिक्र किया तब इसी दौर में बिनाका गीत माला भी प्रमुख पसंदीदा कार्यक्रम होता था पर छत्तीसगढ़ी से लोगों का लगाव इतना था कि छत्तीसढ़ी पहले कहा करते थे। लोकजीवन पर ही आधारित हंसी ठिठौली के रूप में गीत छनर छनर पैरी बाजे, खनर खनर चुड़ी, हांस खुलकत मटकत रेंगय बेलबेलही टूरी के साथ ही कई ऐसी गीतों की रचना हुई आज के दौर में भले ही कई छत्तीसगढ़ी गीतें हिट हुई पर तब के दौर के पुराने छत्तीसगढ़ी गीतों का जरा श्रवण कर तो देखिए अपनी धरा से स्नेह कितना लगाव,कितना स्नेह कितनी खुशी होगी यह बताने की बात नहीं रहेगी। तब के ही गीत मोला जावन देना रे… सहित कई गीतों की रिमिक्स भले ही तैयार किए जाते रहे हों पर यहां के लोग मूल गीतों को ही सुनना ज्यादा पसंद करते हैं।

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