जितनी आधुनिकता एवं भौतिकता की चकाचौंध में जा रहे हैं,जिस तरह जीवन की महती विवाह संस्कार के नाम शादियों का दौर चल रहा है,जहां चकाचौंध तो खूब है पर रिश्ते जर्जर हो गए है। मंहगी कार्ड और अपने ही नजदीकी के रिश्तों को दूर किसी परायों के हाथों देकर आमंत्रित किया जा रहा है,जहां खुद के नजदीकी रिश्तों में जाकर आमंत्रण के नकारात्मक भाव भी खुद ही स्पष्ट कर रहे हैं। इनकी बेशर्मी भी देखिये कि जब बात सोसायटी में चर्चा के दौरान आती है तो ये कार्ड भेजे जाने की बातें करते है। जिस कदर शादी की भव्यता नजर आ रहा होता है,कई दफा तो भव्यता के नाम जिंदगी भर की कमाई कई फिजुलखर्ची में खर्च कर दी जाती है,लेकिन रिश्ते उसी भव्यता में खड़े होते नजर नहीं आते। इतनी भव्यता में रिश्तों का हांफना निश्चित रूप से कारूणिक है।
चाहे कोई भी परिवार हो, आप कितना भी बड़ा आयोजन क्यों न करवा लें जब आपके अपने रिश्ते जिनसे भले ही मतभेद हों न हों तो आपका आयोजन उतना सफल नहीं होता जब कोई अपनों की उपस्थिति आयोजन में न रहे। हजारों हजारों की भीड़ में घर के किसी एक सदस्य के न होने पर निगाहें तकती रहती है। रिश्तों की जर्जरता मुखिया को उस वक्त सालती है,जब दुनियां उमंग उत्साह में आपके आयोजन में शरीक होते बफे सिस्टम में जायकों का आनंद ले रहा होता है और मुखिया न बता सकने वाली अंतस की अंतहीन दर्द में घुट रहा होता है। दौलत के नशे में संवेदना कभी शुन्य हो और बता न पाने वाली स्थिति हो पर एक न एक दिन आपके वही खून के रिश्ते जिनसे मतभेद के नाम दुनिया में आपकी नजरों में बड़े दुश्मन नजर आते हैं, परिवार के किसी सदस्य के नहीं होने पर कांधा देने के नाम किसी एक दिशा को तो सम्हालना ही होता है। जरूरत आज की चकाचौंध भरी उत्सवों के साथ जर्जर हो रहे रिश्तों को सहेजना भी है।
याद हो लोगों की नजर सिर्फ आपके अमीरी के चकाचौंध पर ही नहीं जर्जर रिश्तों पर भी है,जहां इतनी अमीरी के होते आपकी कोई औकात नहीं होती। बाहरी दुनिया में ये जो सामाजिक नेता के नाम पर बड़े नाम होने का आपका दंभ खुद के घर से ही दर्पण में औकात दिखा जाता है। जहां सामाजिकता का पाठ पढ़ाते हर बातों पर समाज की दुहाई देने वाले कैसे खुद अपने आप में रिश्तों को संगठित नहीं कर सकते फिर दुनिया को दिखावे की शिक्षा देने का हश्र ही क्या है। परिचय के नाम पर खुद की दौलत खुद के लिए है,वरना प्रभावशाली अपने अपने स्तर पर समाज के अंतिम व्यक्ति में भी कम नहीं है,जिससे ही समाज खड़ा होता है।