आलेख

मेरा उनसे नहीं जमता..( मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग. )

 
-टंगिया में मार के,बसुला में सुधारत हे
महिला वर्ग में आम जीवनचर्या में बात बात पर चुगली किए जाने,बात नहीं पचने की बात करने वाले कुछ पुरूष की औकात भी आप सोसायटी में देख ही लीजिए कैसे द्वेश विद्वेश में उनकी रोजमर्रा कट रही है। घनिष्ट संबंध बताने वाले संबंध भी बेमानी हो गए हैं कि किसी को धोखा दिए जाने,ब्लेकमेलिंग व्यवहार झूठ फरेब के नाम किसी न किसी तरह पैसे का हिसाब न देने या पैसे लेने, तथाकथित रूप से आज फोन नहीं उठाने,सोशल मीडिया पर जवाब नहीं देने सहित किसी के पास अपने ही मित्र या संबंधी का मीनमेख चुगलबाजी करते नकारात्मक बातें किए जाने जैसी तमाम बातों के चलते उनके संबंध घनिष्ट तो क्या बालु से भूरभुरे हो गए हैं।
चल रहा है तो सिर्फ और सिर्फ औपचारिक संबंध। अल्प शिक्षित वो जिन्होंने कभी पद देखा नहीं था, धारण नहीं किया या अकस्मात धन की आवक होने लगी तो इनका अहम ऐसे बढ़ जाता है,जहां उनके ही निजी संबंध उन्हें बौने लगते हैं। खुद की एजुकेशन पर खुद को ख्याल नहीं है कि वह कहां तक शिक्षित है। दूसरे जो उच्च शिक्षा एवं संघर्ष और प्रतिस्पर्धा से कैसे उस पद पर सेवारत है,इनका न तो अल्प शिक्षित तथाकथितों को न भान है,न सोच की क्षमता। जिसके कारण उनकी वैचारिक बौनापन कभी ऊपर उठ ही नहीं सकता।
मार्केट में आज ऐसा दिन आ गया है कि पूछना पड़ता है कि आपका उनसे जमता तो है ना! जमता है का मतलब उनका आपसी व्यवहार बातचीत ठीक तो है ना? कोई खटास तो नहीं है? तब कोई बात आगे बढ़ानी पड़ती है। ना में जवाब पर मध्यस्थों का सहारा लेना पड़ता है,जिनका उनसे बनता है। नहीं जमने का खास कारण कि किसी के खराब दिन में अपने ही लोगों को ठेस पहूंचाना जिन पलों में सहयोग अपेक्षित होता है वहां नीचता का बाहरी सलूक करना मुख्य है।
शिक्षितजनों में स्थिति साम्य तो बना लिया जाता है,क्योंकि उनके पास सबसे मुख्य एजुकेशन है, जिसकी बराबरी कभी नहीं की जा सकती लेकिन जिन्होंने खुद को होशियार समझते दूसरों को तुच्छ समझने की गलती करता है,उनका सोसायटी में एक दिन ऐसा हश्र होता है कि आम लोग उनसे दूरी बना कर रखना उचित समझते हैं। सोशल मीडिया में जिस तरह मित्रता के नाम रिक्वेस्ट भेजा जाता है,मित्रता सुची में आने के बाद खुद सरोकार नहीं रखते। कुछ तो भौतिक रूप से दुश्मनी पाले होते है,जो जगजाहिर होता है।
लेकिन सोशल मीडिया में उनसे मधुर संबंध की चाटुकारिता दिखा रहे होते हैं,जिनसे लोग समझें कि इनका संबंध ठीकठाक है। दूसरों को बुद्वू समझने वालों को लोग समझते हैं। यह छत्तीसगढ़ी कहावत टंगिया में मार के, बसुला में सुधारने वाली बात है।

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