साहित्यकार परिचय- श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी”
जन्म- 10 दिसंबर 1964
माता-पिता- स्व.कान्ति देवी शुक्ला/स्व.हरप्रसाद शुक्ला
शिक्षा- एम.कॉम, बी.एड.
प्रकाशन- कहानी (किरन),साझा संग्रह (काव्य धरोहर)
सम्मान-
सम्प्रति- व्याख्याता-शास.उच्च.माध्य.विद्या.कोरर, (काँकेर) छ.ग.।
संपर्क- 9826406234
. ”सोला सिंगार”
गोरी करे सिंगार सोला,
सजना के मन भावय।
बगरावय जब केस गोरी के,
करिया बदरी छावय।
केस मा बाँधय मोंगरा अउ
घर अँगना महकावय।
माँग भरय सेंदूर गोरी,
दरपन देख सुहावय।
माथ के लाली टिकली देखय,
सुरुज घलो लजावय।
आँखी मा कजरा ला डारय,
भागत संझा आवय।
कान के बाली हालय-डोलय,
तब पुरवइया गावय।
सोन के नथनी नाक मा झूलय,
मन मंजूर लहरावय।
जग बूड़य लाली मा,
जब-जब लाली होंठ रचावय।
सोन के झूलय हार गला मा,
भाग खुलय इतरावय।
बाँह मा पहुँची पहिर के गोरी,
सजना ला तरसावय।
सुग्घर-सुंदर हाथ दिखय,
जब मेंहदी हाथ रचावय।
चाँदी के करधनिया चमकय,
जब कनिहा मटकावय।
हाथ मा भर-भर चूरी पहिरय,
देख-देख मुसकावय।
अँगुरी मा पहिरय मुंदरी,
आँखी ले बान चलावय।
पैरी के बाजय घुँघरू,
गोरी छन-छन छनकावय।
माहुर गोड़ रचावय गोरी,
मन मा पिरित छलकावय।
गोरी करय सिंगार सोला,
सजना के मन भा