कविता

प्रेरणा : एक गीत श्री रवि शर्मा साहित्यकार अल्मोड़ा ( सल्ट ) उत्तराखंड

ओ सुन्दर प्यारे झरने…
ओ सबसे न्यारे झरने…
तुम रवि की स्वर्णरश्मि में,
कैसे सुन्दर लगते।
और चांदनी रात में,
बर्फ से सुन्दर लगते।।

सुबह से शाम तक,
तुम कूदते उछलते।
हँसते गाते जैसे चलते,
और कभी ना थकते।।

झर-झर बहते ओ झरने,
तुम मन को खूब रिझाते।
तुमको जो देखे अंतःकरण से,
धरती माँ को सजाते।।

वसुधा हो या आसमाँ,
सब झूम झूम कर नाचे।
तेरी दुनिया दुःख हरती है,
कहे रवि ये साचे।।

चलते जाना काम है तेरा,
कभी न रुकना नाम।
वसुधा को तुम पुलकित करते,
चलना ही बिश्राम।।

गति रहे हम सब में निरंतर,
तेरी जैसी दूरी।
ऊंचे नीचे चलते जाना,
बढ़ना बहुत जरुरी।।

हम तेरे अनुगामी बनकर,
सफलता को छू जाये।
झर-झर की आवाज में मिलकर,
सबको साज सजाये।।

 

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