
साहित्यकार परिचय- श्री संतोष श्रीवास्तव ‘सम’
जन्म- 6 सितंबर 1969
माता-पिता –स्व. श्री राजेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव, श्रीमती सुशीला देवी श्रीवास्तव,
शिक्षा- एम. ए. हिंदी साहित्य, इतिहास। डीएड।
प्रकाशन-कविता संग्रह-आसमां छोड़ सूरज जब चल देगा। तुम प्रतिपल हो। कहानी संग्रह–वे सौदागर थे।
सम्मान– राष्ट्र गौरव सम्मान, डॉक्टर अंबेडकर साहित्य सेवा सम्मान, राष्ट्रकवि दिनकर साहित्य सम्मान, रूम टू रीड इंडिया नई दिल्ली द्वारा कहानी पर प्रथम पुरस्कार, सफल सम्मान, न्यू ऋतंभरा साहित्य सम्मान- साहित्य सृजन सम्मान,आदि।
संप्रति- शिक्षक, संपादक जागो भारत ‘त्रैमासिक ‘ पत्रिका।
संपर्क-बरदेभाटा, कांकेर, जिला- कांकेर ,छत्तीसगढ़। पिन 494334 मोबाइल 9993819429
”कैद कर लो इन्हें”
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ओ नन्हें बाबू,
क्या खींचते हो,
तस्वीरें,
इन हरी-भरी,
फिजाओं की।
खींचो,
खूब खींचो,
कैद कर लो,
इन्हें अपने,
बंद कैमरे में।
जब जमीं न बचेगी,
शेष,
अपने कब्जे में,
कर लेगा मानव,
अपनी चंद आवश्यकताओं,
पूर्ति के लिए,
खूब खूब।
तब इन पहाडो़,
जंगलों में ही तो,
डालेगा मानव डेरा,
खत्म कर देगा,
इसका हरापन।
ये पहाड़,
ये जंगल,
जहाँ तक हरियाली,
बिखरी है,
कैद कर लो इन्हें।
इनके उजड़ जाने पर,
भालू,बंदर,बाघ,
सब रूबरू होंगे,
पूरी तरह तुमसे,
जैसे आज,
कभी कभी,
हो जाते है।
कैद कर लो इन्हें,
अपने बंद कैमरे में,
ताकि ओ मानव,
तुम्हारे साथ,
ये पशु भी तो,
देख पायेंगे,
यह तस्वीरें।