
‘मानवों की पहचान’
ओह,
कैसे तुम्हें हजम होती है, अपने घर की रोटी,
और बहुत सारे अपने वैभव।
तुम कैसे देख पाते हो,
इन दिनों,
मानव का,
चूल्हा एवं खाली पड़े बर्तनों से,
नाता जुड़ जाना।
तब वहांँ मानवता क्यो मर जाती है,
जो मानव होने की निशानी है।
हां मानव रूपी नस्लें,
और जो इस तथ्य से परे रहकर,
किनारे से साफ निकल जाया करते है,
तो ताली दे कर कहता हूं, वे मानव नहीं है,
मानव के रूप में,
कोई ऐसे जीव हो सकते है, जिसकी तुलना,
किसी भी जीव से नहीं की जा सकती।
यही स्थिति कई परिवारों की, इस कोरोना काल मे,
लॉकडाउन के समय हुई।
तब मैंने जाना,
सच मेरे अगल-बगल भी,
कोई मानव नजर नहीं आते, मैंने सच्चाई जानी है ,
इस अमानवीय दुनिया की,
और उनकी,
जिन पर अपना होने का,
ठप्पा लगा है।
शायद ईश्वर ने कोरोना का यह काल,
यही जानने लाया होगा,
कि इस धरती पर कितने मानव है,
और कितने मानव के रूप में कुछ और हैं,
ठीक ठीक खबर हो सके।
इन गरीबों का तो कुछ नहीं होगा,
दिन ढल जाएंगे,
और यह भी तमाम तकलीफों को सहते,
पार निकल जाएंगे।
इनका क्या बिगड़ेगा,
कुछ भी नहीं।
पर हां बहुत कुछ बिगड़ जाएगा,
उन मानवों का,
जो मानव के रूप में,
मानव नहीं है।
और भटकेगे वे,
जन्मो जन्मो तक,
कई बंधनों में,
कई रस्सियों में,
बंधे हुए से।