कविता

”औरत” श्री विजय तिवारी ‘निर्मोही’ साहित्यकार पत्रकार चारामा,कांकेर छ.ग.

”औरत”

बार बार
हमने उसे
औरत कहा
और बना दिया
भोग की वस्तु मात्र।

भूला दिया त्याग
करूणा के भाव
ममत्व की पहचान
और, बिठा दिया
बाजार में।

हमने उसे देवी कहा
चढ़ा दिया
ऊंची मिनारों में
और, रोक दिया,
विकास पथ पर

पहुंचने से मंजिल तक।
हमने उसे बेवफा कहा
करते रहे शोषण
देते रहे, उत्पीड़न
करते रहे जुल्म

और, खेलते रहे निरंतर
उकनी कोमल भावनाओं से।
हमने उसे संगिनी कहा
झूठे वायदे किये
सात वचन

निभाने की
और, बना दिया दासी
सेवा करने बुढ़ापा में
जीवन साथी का नाम देकर।

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