साहित्यकार परिचय- श्री विनोद तिवारी
जन्म- 2 मई 1941 तत्कालीन उत्तरप्रदेश के नैनीताल जिले के दूरस्थ ग्राम महुआ डाबरा में जो अब उत्तरांचल के ऊधम सिंह नगर जिले में है।
माता-पिता- श्रीमती जयवती देवी श्री राजेश्वर प्रसाद तिवारी
शिक्षा- एम.ए.(हिन्दी साहित्य) ब्राॅडकास्टिंग जर्नलिज्म डिप्लोमा
प्रकाशन – दो गजल संग्रह-दर्द बस्ती का और मोम के बुत। बाल उपन्यास टामी, किशाेर उपन्यास-अंतरिक्ष के नन्हें यात्री।दो बाल गीत पुस्तकें- नव साक्षरों के लिये तीन पुस्तकें। शिवम मासिक पत्रिका का संपादन। अनेक संकलनों व देश की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में रचना प्रकाशन। दूरदर्शन व आकाशवाणी से प्रसारण।
सम्मान- आकाशवाणी,दूरदर्शन व देश की अनेक साहित्यसेवी संस्थाओं द्वारा सम्मानित। महामहिम राज्यपाल द्वारा सार्वजनिक सम्मान। उपाध्यक्ष जनवादी लेखक संघ मध्यप्रदेश।
सम्प्रति-आकाशवाणी से सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य एवं समाज-सेवा।
सम्पर्क-जय राजेश, ए-462 शाहपुरा,सेक्टर ए(मानसरोवर कालोनी)भोपाल म.प्र.
जीवन धूप-किरन
जीवन जैसे किरन धूप की, यह आई वह जाती है।
सुबह सबेरे में उगती है, सांझ हुए ढल जाती है।।
जैसे एक पथिक अनजाना,आया ठहरा चला गया।
दिन में बहुत चतुर बनता था, रात हुई तो छला गया।।
पल दो पल का खेल, कि बाजी लगी नहीं,लुट जाती है।
जीवन जैसे किरन धूप की, यह आई वह जाती है।।
दो दिन का मेला बसंत का, दिन बीता और उजड़ गया।
दो सांसों का भवन,बना और बात बात में बिगड़ गया।।
एक षाख खिलती है कलियां, एक षाख मुरझाती है।
जीवन जैसे किरन धूप की यह आई वह जाती है।।
जैसे एक त्योहार सजीला, होली हो या दीवाली।
एक दिवस की चमक दमक है, अगले दिन कुटिया खाली।
एक मांग सिंदूरी सजती, एक मांग धुल जाती है।
जीवन जैसे किरन धूप की, यह आई वह जाती है।।
जैसे एक मधुर सा सपना, आंख खुली और टूट गया।
भर भर हाथ समेटा, जाते जाते सब कुछ छूट गया।।
रोती रह जाती है सखियां, और डोली उठ जाती है।
जीवन जैसे किरन धूप की, यह आई वह जाती है।।