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”ससुराल प्रथम आगमन का सम्मान और आनंद”मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.

-इसीलिए कहा जाता है,ससुराल गेंदा फूल
हिन्दु सनातन धर्म में कई शुभ मुर्हूत पर विवाह आयोजन हो रहा है। विवाह के बाद मुख्य रूप से लडकी का प्रथम बार मायका एवं लडके का ससुराल जाना भी परंपरा का ही एक हिस्सा ही है।

लडकी पक्ष वालों की तरफ से इस प्रथम आगमन का राह तका जाता है। प्रथम बार जब कोई लडका अपने ससुराल आगमन होता है, तो जहां हल्दी धुलवाई रस्म भी पुरा करना होता है जो लडके की सालीयां किया करती है। हालांकि आज की तिथि में यह परंपरा विवाह के अवसर पर भी निपटाया जाता है।

यह तो प्रथम संबंध में प्रथम बार सारे परिवार से रूबरू होने मिलने मिलाने का अवसर भी होता है। इसी वक्त लड़के को भी पता चलता है कि अब उसके सीमित रिश्ते नहीं अपितु अथाह समंदर जैसे रिश्ते हैं,जिसे निभायी जाना है।

इसके साथ ही हिंदु धर्म में प्रथम होली भी विशिष्ट महत्व रखता है, जहां प्रथम होली के लिए लडकी को ससम्मान मायके ले जाया जाता है। अतीत से चली आ रही यह परंपरा है। जो किसी अनिष्ट की आशंका से दुर होने किया जाता है।

इसके साथ एक महत्वपुर्ण बात और बता दें कि प्रथम प्रसव भी अमूमन रूप से मायके में सम्पन्न कराये जाते रहे हैं। हालांकि यह बात दीगर है कि आधुनिक समय में अपने फील्ड और परिवार की सुविधानुरूप जैसा उचित लगे किया जाता है।

इसमें किसी भी परंपरा का बंधन नहीं होता है। उपर लिखी नेंग परंपरा रिवाज हर समाज में अलग अलग होता है। लेकिन विवाह उपरांत प्रथम ससुराल गमन का आनंद ही अलग होता है। जहां सम्मान में पलक पांवडे बिछाये जाते हैं। हो क्यों नाǃ बेटी जिनका ब्याह किया अपने जीवनसाथी के साथ प्रथम बार जोडे के रूप में वहां आ रही होती है।

जहां जन्म हुआ पली बढी और ब्याह हुआ। एक मां एक पिता एवं भाई बहन एवं परिवारजनों के लिए यह खुशी निश्चल स्नेह का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।

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