”ससुराल”
आज
बहुत दिनो बाद
‘उसका’ फोन आया।
अपनी मधुर आवाज में
उसने पूछा- कैसे हो?
हमने कहा- आँखों मे चुभन,
दिल में जलन,
साँसें भी हैं कुछ थमी-थमी सी,
चेहरा भी है बुझा-बुझा
दिन है काले, रातें अंधियारी
है सब तरफ धुआँ-धुआँ।
उसने खिलखिलाते हुए कहा-
कविराज! क्या हुआ?
कविता कर रहे हो
या मुझे याद कर
अब तक मेरे प्यार में
तड़पते हुए आहें भर रहे हो ?
हम दोनों का बुढ़ापा
अब चौखट पर खड़ा
दरवाजा थपथपा रहा है
और तुम जी रहे हो जवानी में?
हमने कहा- नहीं जानेमन!
यह बात न बुढ़ापे की है
ना है जवानी की,
मैं तो दीपावली मनाने ‘इसके’ साथ
इसके मायके में आया हूं
तुम तो जानती हो
मेरी ससुराल है राजधानी की।
पहले से ही दिल्ली का
सड़कों की बेतहाशा भीड़,
वाहनों का बढ़ता शोर और
शहर की गंदगी से प्रदुषित
यमुना के कारण बुरा हाल है,
उपर से कटाई के बाद आजकल
खेतों में जलाई जा रही पलारी
बन गई जी का जंजाल है।
भ्रष्ट नेताओं के मकड़जाल में
सिसकती दिल्ली को,
इससे छुटकारे की
कोई राह नजर नहीं आती।
ऐसे में
आंखों में चुभन,
दिल में जलन
सांसें भी है कुछ थमी-थमी सी
चेहरा भी है बुझा-बुझा
दिन है काले, रातें अंधियारी
है सब तरफ धुआँ-धुआँ
जहां तक मेरी नजर जाती।