(मनोज जायसवाल)
महानगरीय ‘शहरिया’ संस्कृति आज गावों तक आने से जिस तरह आर्थिक ढांचे को पोला कर रही है,निश्चित रूप से कहीं पुनः अतीत के वो दिन ना आए जहां हम जीवन के संस्कारों को अपने परिजनों के साथ पूरा करें जो हमारे हित में भी होगा। समाज में मुख्यतः वैवाहिक संस्कारों में भीड बढाये जाने के साथ फिजुलखर्ची आज समाज की प्रमुख कुरीति के रूप में भी सामने आ रही है।
मानव जीवन के तीन संस्कारों जन्म, विवाह,मृत्यु संस्कार में जिस तरह अधिकाधिक लोगों को जुटाने की परंपरा की शुरूआत हुयी। विवाह संस्कारों में बताने की जरूरत नहीं कि कैसे एक दूसरों के बीच उत्सव को अलग मनाने की प्रतिस्पर्धा मची हुई है। जहां इस प्रतिस्पर्धा में मध्यवर्गीय परिवार आज पूरी तरह इसके आगोश में है।
कानफोडू डीजे जिसकी धुनों में उत्सव मनायी जा रही है,जिसने ही हृदयाघाट,मानसिक अशांति,कर्ण संबंधी रोगों को जन्म दिया है,अपितु हार्ट अटेक के कितनों की आकस्मिक मौत भी हो रही है। पार्टी में विभीन्न प्रकार के तैलीय मसालों से निर्मित खानपान की सामग्रियां जो एक दिनी आनंद की हो, पर कई-कई दिनों तक मानव स्वास्थ्य में प्रतिकूल असर डाल रही है।
विवाह समारोह में एक दूसरे की पार्टी को देखकर कई आम मध्यम वर्ग न किसी तरह खर्च करने अमादा है। कई लोग तो अपनी बेशकीमती जमीन बेचे जाने के लिए पूर्व से निर्धारित कर लिए होते हैं, कि वे अपने पुत्र-पुत्री की शादी में इसे विक्रय करना है। शासकीय नौकरीपेशा अपने जीवन की कमाई महज दो दिनों में खर्च कर लेना चाहता है। इनको देख आम मध्यमवर्गीय जिनका निश्चित आय नहीं,समकक्ष पार्टी के नाम फिजुलखर्ची उन्हें आयोजन के बाद उसी पटरी में जिस पटरी पर जीवन दौड़ती है,पता चलता है। कुछ लोग जमीन बेचे तो कुछ लोगों ने लोन भी लिया। सबके अपने किस्से! लेकिन सबकी परेशानी आने वाले दिन मुखिया को झेलना पड़ेगा।
,कुल मिलाकर लोगों के लिए उक्त फिजुलखर्ची दिखावे के आयोजन का दंश ना बता सकने वाली दुःखों के साथ अंतस में लिए संघर्षमय रहता है। शायद इतनी भीड़ के साथ आयोजन पर यही साबित किया।
जीवन की महती ये तीनों संस्कार वैसे तो पारिवारिक निजी संस्कार है,लेकिन जिनकी जितनी आर्थिक हैसियत, प्रतिष्ठा उतनी वे तामझाम के साथ प्रदर्शन चाहता है। किसी आयोजन में मुखिया के अतिरिक्त डीजे,कैटरिंग,बाजा,फोटो,वीडियोग्राफी,विद्युत चकाचौंध के साथ ही नित नये दिखावे के प्रदर्शन पैदा हो रहे हैं,जिसमें कार्य करने वाले अपना व्यवसाय करते हैं,यानि किसी परिवार के लिए तो शादी है,लेकिन तमाम लोग अपना व्यवसाय मान कर कार्य करते हैं।
लौट आयेंगी निजी संस्कार
निश्चित रूप से लगातार लोगों के आर्थिक ढांचे ध्वस्त होने के चलते मध्यमवर्गीय परिवार में आने वाली पीढी के लिए विक्रय के नाम कुछ नहीं बचेगा। रोजगार की समस्या के बीच जो रोजगार में है वो अपनी आजीविका चला रहा होगा। पर लगातार कमरतोड़ महगाई के बीच इस स्थिति में नहीं होगा कि वे अनावश्यक फिजुलखर्ची कर सके। बीते करोनाकाल में जिस तरह आयोजनों में शासन प्रशासन से एक निश्चित संख्या में लोगों की भीड की अनुमति लेकर वैवाहिक संस्कार निभाये गये। लग रहा था कि लोगों में भविष्य के प्रति जागरूकता आयेगी पर पुनः आज गांव,नगर,गली,कुचों में भयंकर फिजुलखर्ची के साथ होने वाला यह निजी आयोजन खुद को वरन टेªफिक व्यवस्था के चलते दूसरों के लिए भी परेशान करने वाला आयोजन बनते जा रहा है।