बेशर्मी की कहानी पर शर्म कहां? श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर‚कांकेर (छ.ग.)
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
बेशर्मी की कहानी पर शर्म कहां?
भगवान करे ऐसा पति किसी को ना मिले। यह शब्द कोई भी महिला बहुत परेशान होने के बाद ही कहती है। कभी स्पष्ट रूप से कहती है,कभी मन में कहती है। दूसरी महिला के पति यदि अच्छा लगे पर यह भी वैसा ही है। स्त्री का सम्मान,उनकी भावनाओं का सम्मान यह विषय है,जिसे समझ लें तो स्त्री उत्पीड़न की बात ना रहे।
शिक्षित साभ्रांत और आधुनिकता के इस युग में उत्पीड़न की बात पिछले जमाने में आलेख संजोने की बात हो पर आज भी बदस्तुर जारी है। अंतिम समय तक पीड़ा सहने वाली स्त्री की छोड़ और कोई नहीं हो सकता। किशोरीवस्था से पार होकर जीवन के अहम वैवाहिक पड़ाव में कदम रखने के बाद भी कई-कई स्त्रियों का जीवन मझदार में नजर आता है।
वो क्लियर करना चाहती है कि या फिर वो अपने युगल जोड़ी साथ रहे या एकल हो जाएं। लेकिन वक्त के थपेड़े में मझधार की जिंदगी निर्वहन करने बाध्य होती है। किसी भी स्त्री का विवाहोपरांत कलुषित वातावरण और उनके मधुर जीवन में कड़वाहट घुल जाने की वजह से हो या कुछ लेकिन सिंदुर नहीं लगाने छोड़ देना, अपने नाम के आगे वो सम्मानसुचक शब्द जिसको लगाना हर स्त्री अपना धर्म मानती है।
विवाह के बाद श्रीमती लगाना वो कभी नहीं भूलती। लेकिन उसकी जिंदगी में ऐसा कडुवाहट से भर दिया जाता है कि वो अपने नाम के साथ श्रीमती लगाना नहीं चाहती जिसका दंश सिर्फ और सिर्फ वो ही समझ सकती है। पूछने वाले तो उनसे उनकी कहानी सुनकर कुछ लोग मजे लेने वाले भी है। सारी संपदाओं के होते ये वो पीड़ा है,जिसे वो एकाएक चाह कर भी बयां नहीं कर सकती।
लेकिन अपनी संस्कृति को अंतिम समय तक पालन करने का हसरत पाले बैठी वह स्त्री हमेशा उस दिन का इंतजार करती है, जिस दिन का सुर्य उन्हें उनके पति की वापसी के रूप में देखने मिले। पर असमय कि ऐसा नही भी हो पाता। मझझार में पड़ी कई स्त्रियों को उनसे जुदा होने संबंध विच्छेद के लिए भी वर्षों तक समाज में लटका कर रखा जाता है,जिसके चलते वो कुछ और निर्णय नहीं ले सकती।
स्त्री की परिचय में मांग में सिंदुर नाम के आगे सम्मानसुचक श्रीमती शब्द लेकिन पुरूष का क्या है? पीड़ा तो उन्हें सिर्फ अपने जीवनसाथी से विलग होने का ही होना है,इसके अतिरक्त क्या? समाज में फिर से सिर ताने घुमेगा अपनी बेशर्मी की कहानी भी बयां करते जिस पर शर्म आनी चाहिए लेकिन शर्म आती कहां है।