”श्रम साधकों का सम्मान हो”श्री तिलक तनौदी ‘स्वच्छंद’ वरिष्ठ साहित्यकार तनौद‚जांजगीर चाम्पा(छ.ग.)

तिलक तनौदी ‘स्वच्छंद’
पिता-श्री छत्तराम महिपाल
माता- श्रीमती छतबाई महिपाल
जीवन संगिनी– श्रीमती अंजू महिपाल
सन्तति-
२. प्रकाशित पत्रिका:-राष्ट्रीय हिंदी साहित्य अंचल मंच के मासिक पत्रिका (बिहार),किरण दूत(रायगढ़), कोलफील्ड मिरर (कलकत्ता), काव्य कलश वार्षिक पत्रिका(छत्तीसगढ़), विवेक एक्सप्रेस (मुंबई),मालवा हेराल्ड (उज्जैन,मध्यप्रदेश), साइंस वाणी पत्रिका(रायपुर)।
पिन :- 496001
”श्रम साधकों का सम्मान हो”
दिल में हर किसी के एक बात होनी चाहिए।
सभी श्रम साधकों का सम्मान होना चाहिए॥
निर्माण का आधार स्तंभ ये ज्ञात होना चाहिए।
कंधों पर दुनिया का भार एहसास होना चाहिए।
अलकस दम तोड़े घुटनों पर ऐसा ये फुर्तीला।
इनके मेहनत का सदा सत्कार होना चाहिए।
सभी श्रम साधकों का सम्मान होना चाहिए॥
नीव का ईंट इनका स्थान ये ज्ञात होना चाहिए।
हाथ इनके सृजनकारी ख़्याल होना चाहिए।
सर्दी, गर्मी और वर्षा में सतत काम में लीन ये।
इनके हिम्मत को सदा सलाम होना चाहिए।
सभी श्रम साधकों का सम्मान होना चाहिए।
अध्याय प्रथम जीवन का है, ज्ञात होना चाहिए।
जगत का ये पालन कर्ता,एहसास होना चाहिए।
इनके कर्मो में निर्भर जड़-चेतन का अस्तित्व।
इनके साहस का सदा गुणगान होना चाहिए।
सभी श्रम साधकों का सम्मान होना चाहिए।
इनके काले बदन पर, ना उपहास होना चाहिए।
नंगे कदमों का न कभी, निरादर होना चाहिए।
सबसे ऊंँचा इनका स्थान, न नीचा होना चाहिए।
कामगार के बेदनाओं पर,संवेदना होना चाहिए।
सभी श्रम साधकों का नित सम्मान होना चाहिए।