सुहागन की पहली पहचान,उनका मान सम्मान और आस्था का प्रतीक…… सिंदूर🔴 श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.
श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
सुहागन की पहली पहचान,उनका मान सम्मान और आस्था का प्रतीक…… सिंदूर🔴
सनातन धर्म में विवाह के दिन ‘पाणिग्रहण’ अवसर पर सात फेरे के बाद अपने होने वाली जीवन संगिनी की मांग में वैदिक मंत्रोच्चार के मध्य सिंदूर भरा जाता है। इस अवसर पर इस क्षण में वर वधू के नाक से सिंदूरभरते हुए ले जाते हैं जो मध्य कपाल तक ले जाया जाता है,इसके पीछे हिंदु धर्म में मान्यता है कि जितनी लंबी सिंदूर की रेखा… सुहाग की उम्र भी उतनी ही लम्बी होगी….!
विवाह के बाद पति के जीवित रहने तक प्रतिदिन स्त्रियां अपनी मांगों में सिंदूर भरा करती है। सिन्दूर सिर्फ सुहाग के प्रतीक के तौर पर ही नहीं अपितु इसके वैज्ञानिक कारण है। इसी सिंदूर में पारा मिला रहता है जो महिला के मष्तिष्क की प्रमुख महारंध्र ग्रंथि से संपर्क होता है और विवाह बाद होने वाली तनाव,चिंता जैसी कई अवसादों से मुक्ति दिलाता है। पारा जैसी धातु होने के चलते चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं आने जैसी बातें भी सामने आई है अब यदि इस बात को सही मानें तो पारा कितना मंहगा है, बताने की जरूरत नहीं।
फिर यदि सिंदूर में पारा मिलाया जाता है, तो बाजार में इतने सस्ती दरों पर कैसे बिकती है सिंदूर???यह एक सोचनीय प्रश्न है। आयुर्वेद में जाएं तो सिन्दूर एक मध्यम आकार का पौधा होता है जिसके फल से सिंदूर बनाये जाते हैं। यह पेड़ बस्तर में भी कई घरों में लगाए जाते हैं… लेकिन इसका यहां कोई उपयोग नहीं है। जिन्हें इसके संबंध में जानकारी है वो उनके काम की चीज है। सिंदुर के पेंड़ की फल को हमने सुखा कर चुर्ण बनाने का प्रयास भी किया पर इसमें तो ऐसा कुछ रंग नहीं छोड़ता।
हां कच्चे फल में सौंधी-सौंधी बड़ी अच्छी खुश्बू जरूर आती है। हमें अभी तक समझ नहीं आया कि यदि असली सिंदूर इसके फलों से बनायी जाती है तो इस प्रकार कहां से रंग की उत्पत्ति होती है? तमाम धार्मिक स्थलों,दुकानों में असली सिंदूर के नाम उत्पाद काफी बिक रहे होते हैं। अब हम किसे असली मानें किसे नकली। इस पर भी बड़ी भ्रम की स्थिति है। जो सिंदूर विवाह के समय पति सातों वचन निभाने के संकल्प लेते समय हो रही पत्नी की बीच मांग में भरता है,उसकी स्थिति आज आधुनिकता में किस प्रकार से फैशनेबल चीजों जैसा रूप ले चुकी है।
सूखी सिंदूर के साथ कुंमकुम और फिर लिक्विड रूप से मिलने वाली चीज जिसे सिंदूर मान लिया गया है,आज इसे बीच की मांग में लगाना छोड़ साईड में मांग निकाल कर लगाया जा रहा है। इससे आगे निकल कर मांग छोड़िये माथे की बाजू में लगायी जा रही है। अब तो बाजू में लगा कर बालों से भी इस तरह ढका जाता है,जो सामने वाले को पता ही नहीं चलता कि सिंदूर लगायी गयी है कि नहीं??इस संबंध में हमने कई जागरूक महिलाओं से बात की। किसी ने साईड में लगायी जाने वाली सिंदूर को अनुचित बताया तो किसी ने आस्था का विषय बताया। सिंदूर एक आस्था है। सबका अपना एक धर्म है,जिसे आप मानते हैं और पूजा करना आपकी साधना है। इसमें किसी को कह नहीं सकते जिसकी जो आस्था और पसंद हो वो कर रही है।
तत्संबंध में कई पुरुषों ने बीच मांग की अपेक्षा अन्यत्र सिंदुर लगाये जाने को हास्यास्पद बताया कि जब हमारे प्रश्नों का जवाब में उन्होंने स्वयं के यहां इस संबंध में बात करने की हिमाकत नहीं करने की बात बतायी। जबकि कुछ महिलाओं से हमने पूछा कि साईड में लगाने का क्या? उन्होंने कोई जवाब नहीं देते मूंह फूला लिया गया। तो कुछ महिलाओं ने कहा कि… सिंदूर क्या कई महिलाओं ने तो स्त्री सुहाग की प्रमुख निशानी को मंगलसुत्र तक को त्याग दिया है,इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है।
अब किसे क्या बोलें??? सबकी अपनी आस्था। कुछ ने तो इस संबंध में यह तो उनकी श्रद्वा हमें क्या? यह कह कर बात टाल दिए। हनुमान जी तो पूरे सिर से पैर तक सिंदूर लगाए रहते हैं…इसके पीछे की कथा है कि सीता माता विवाह के बाद एक दिन सिंदूर माथे पर लगा रही थी ….हनुमानजी उन्हें ऐसा करते देख पूछे कि आप ऐसा क्यों कर रही हैं तो सीता माता ने कहा…इससे प्रभु श्री राम की उम्र लम्बी होगी …हनुमानजी ने सोचा कि गर्मी पूरे शरीर में सिंदूर लगा लूं तो प्रभु की उम्र और लम्बी होगी ..!
श्रीराम हनुमानजी को उनके इस निश्छल प्रेम के कारण वरदान देते हैं कि जो तुम्हें मेरे नाम का सिंदूर लगाएगा तुम सदैव उनकी रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध रहोगे…! हमारी भारतीय संस्कृति में सिंदूर का महत्व कभी कम नहीं हुआ है। इसकी महत्ता हमारी संस्कृति में इतनी गहरी है कि कोई भी लड़की अपने साज सज्जा का हर सामान काजल बिंदी,लिपस्टिक पाउडर सब खरीद सकती है …किन्तु सिंदूर कभी नहीं खरीद सकती ..!देश के पश्चिम बंगाल में इसी आस्था पर सिंदूर खेला जैसा पर्व मनाते हैं।
अगर हम हिंदी सिने कला जगत की ओर रूख करें तो सिंदूर पर ऐसे कितने लोकप्रिय गीत लिखे गये। फिल्मों में सिंदूर की महत्ता प्रतिपादित करते। सिर्फ गीत ही नहीं सिंदूर पर फिल्म भी बनी। वर्ष 1987 में रीलिज फिल्म सिंदूर जिसमें शशिकपूर,जयाप्रदा,जितेन्द्र,ऋशि कपूर, गोविंदा,नीलम ने प्रमुख भुमिकाएं निभायी थी, 1976में उधार का सिंदूर नाम से भी फिल्म बनी। क्षेत्रीय फिल्मों की श्रृंखला में भोजपुरी सिने में भी सिंदूर नाम से फिल्म बनायी गयी।