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सशक्त हस्ताक्षर – 23 वीं कड़ी अशोक चक्रधारी, कोण्डागांव बस्तर छत्तीसगढ़

(मनोज जायसवाल)
-अंतिम पायदान से ऊपर उठ कर कला जगत में मिट्टी शिल्प बस्तर का नाम विश्व पटल पर पहचान दिलाने वाले उस कलाकार की विकास यात्रा, जिनका जीवन मिट्टी शिल्प को समर्पित है। जिनका स्वयं का जीवन संघर्ष से तराशा गया है।

जन्म
2 मई 1968 को बस्तर की धरा पर इस सुपुत्र अशोक चक्रधारी को जन्म देने वाली मॉं कुलीन बाई जो स्वयं इस धरा से विदा ले ली। यह पुत्र जिसका नाम रखा गया था,अशोक चक्रधारी, मातृत्व स्नेह से वंचित हो गया। बस्तर संभाग के चारामा विकासखंड मुख्यालय से लगा ग्राम डोकला में अति गरीब वर्ग कुम्हार परिवार में जन्मा आम व्यक्ति था।

इनका परिवार इनके पारंपरिक जातिगत कार्य चाक पर हंडी एवं अन्य उपयोगी बर्तन बनाने का काम करते थे। मॉं के ना रहने पर इनके जीवन अंधकार ही अंधकारमय हो गया था। बालपन में क्या करता! पिता से इसी अल्प उमर में ही तिरस्कार झेलता रहा। पिता ने कभी अपने दम पर इन्हें पढ़ाना दूर खाने तक के लिए लाले पड़ते थे। किसी तरह पास पड़ोस से उस अतीत में अपने पेट की तपिश और अन्न से शांति कर लिया करते। बावजूद इसके किसी तरह इन्होंने तब ग्राम में चौथी कक्षा पास की।

संघर्ष का सफर
युं तो जन्म लेते ही मॉं के इस दुनिया से विदा होते ही इनका संघर्ष शुरू हो चुका था। 1952 में ग्राम डोकला से इनके पिता रोजी मजदूरी कार्य करते थे। पत्नी यानि अशोक की मॉं की मृत्यु के बाद इन्होंने दूसरी पत्नी ले आया। जिन्होंने अशोक को खूब प्रताड़ित कर रखी थी। प्रताड़ना के इस दौर में अशोक किसी तरह रोजी मजदूरी करते चौथी कक्षा पास किये ही थे, कि इनके पिता  ने इन्हें अपने घर से निकाल दिया। इस अबोध बच्चे को इस पारा टोला में कुछ सुझ नहीं रहा था कि अपनी पेट कैसे तृप्त करे। पढ़ाई तो छोड़ ही दी थी, वो पेट की तृप्ति देखते कि पढ़ाई। इनके मन में बात सुझा किसी के यहां नौकर लग जाता हूं। काम खोजते खोजते कुम्हार लालू चक्रधारी के यहां काम की तलाश में गए। उस परिवार ने पूछा कि मुझे काम पर रखोगे क्या? उन्होंने स्वजातीय एवं इनकी पीड़ा देखते इन्हें रख लिया। स्वजातीय होने के चलते ये परिवार भी मिट्टी के बर्तन बनाने का काम किया करते थे सो इन्हें रख लिया। बालक   अशोक   नौकर बन कर जीवन गुजारता रहा। लेकिन बाद में पता चला कि पिता लकवाग्रस्त हो गए हैं, अषोक पूर्व बातें भूल उनके दिए प्रताड़ना को भूल कर अंतिम स्थिति तक उस पिता की इन्होंने सेवा करते जीवन में सम्मान दिया।

विवाह
बालक अशोक चक्रधारी की तब कम उम्र में ही इसी परिवार ने शादी करने का विचार किया।   केशकाल के समीप सिंगनपुर गांव में ही लड़की देखी गयी। लड़की पक्ष को बताया गया कि इनका कोई नहीं है। हमको देख कर ही आप बातें कीजिए। लड़के के मेहनत एवं प्रतिभा को देखते एक परिवार ने अपनी लड़की का हाथ देने राजी हो गया। गरीबी से लड़के इस अंधकारमय वक्त में इनकी शादी भी हो गयी। लड़के अशोक की मजबूरी का फायदा उठाते लड़की के परिवार ने पांच साल तक इन्हें घर जमाई की तरह रखा। इस तकलीफ के दौर में एक दिन परेशान होकर अशोक कोंडागांव चले आये। यहां दया राम चक्रधारी जो कि इनके स्वजातीय थे, द्वारा लड़की के परिजनों के साथ सुलह कराया। दयाराम जो कि गांव के मुखिया थे ने अशोक के लिए नक्सल प्रभावित   मसोरा  ग्राम पंचायत के कुम्हार पारा में एक जमीन मुहैया कराया। फिर यहां बस गए। पहले अकेले थे,पर अब शादी के बाद दोनों मिलकर काम करने लगे। समाज के जो लोगों के नजरीये के चलते इन्हें अपमानित होना पड़ा वही लोग इनकी प्रतिभा को सलाम करने लगे। अशोक चक्रधारी की तीन बिटिया है,जो शिक्षा के दम पर अपने मुकाम पर हैं।

मिट्टी कला का सफर
जगदलपूर से यह अशोक चक्रधारी का परिवार कोंडागांव बाजार पारा में आ गया। तब यहां के एक फारेस्ट कर्मी चाक खपरा बनाने का आर्डर दिए। उन्होंने इस कार्य के लिए काफी प्रोत्साहित किया। साथ ही आर्थिक सहयोग भी कार्य के एवज प्रदान किये। वर्ष 1989 में यहां के साथी संस्था के सच्चे साथी अध्यक्ष भूपेश तिवारी जो मिट्टी शिल्प यानि कुम्हारों के लिए कार्य करता था, द्वारा विधिवत ट्रेनिंग  जगदलपूर में दिया गया। इसके बाद मूल रूप से मिट्टी शिल्प की मुख्य धारा में आए। टेªनिंग के बाद पहले कार्य पर पहले ग्राहक धमतरी से आये थे,जिससे 1500 रूपये की आमदानी हुई थी।

पहचान का मोहताज नहीं
मिट्टी शिल्प के धनी अशोक चक्रधारी आज वो प्रतिभा है,जो किसी पहचान का मोहताज नहीं। इनके बनाए मिट्टी शिल्प कलाकृति को देखने सरकार के मंत्री,उद्योग पति,देशी विदेशी सैलानी आते रहते हैं। तात्कालीन मंत्री रहे केदार कश्यप द्वारा इन्हें यूरोप देश ले जायी गयी थी,जहां इन्होंने अपनी कला का जौहर दिखाया। राज्यपाल महामहिम ई.एस.एल.नरसिम्हन यहां पहूंच कर चाक पर अपना हाथ आजमाया था। शिल्पी अशोक चक्रधारी ने टेराकोटा शिल्प की संपूर्ण प्रक्रिया की जानकारी उन्होंने दी थी। उन्होंने वहां कुछ सामग्रियां भी खरीदी की थी। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल स्वयं शिल्प ग्राम स्थित अशोक चक्रधारी निवास पधार चुकी है। अशोक चक्रधारी की कला बेहद मंजी हुई कला व तपस्या का परिणाम है,इसे किसी भी तरह मशीनों से तराशा नहीं जा सकता। अशोक चक्रधारी का बालपन कितना संघर्ष पूर्ण रहा पर आज वे कई लोगों को रोजगार दे रहे हैं। लेकिन उन्हें मलाल इस बात का भी है कि हर कला में पुरस्कार मिला पर मिट्टी कला में किसी को पुरस्कार न मिलना बड़ा दुखद है।

पुरस्कार/सम्मान –
राज्य हस्त शिल्प पुरस्कार 2006 में, केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय द्वारा नेषनल मेरिट प्रशस्ति पत्र 2016,छ.ग. हस्त शिल्प विकास बोर्ड रायपुर से सम्मान,दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र नागपुर, सिरजन 2001,सिटी क्राफट मेला नागपुर,साउथ सेंट्रल जोन कल्चर नागपुर,बस्तर हस्त शिल्प मेला-सह-सम्मेलन 2018, पारंपरिक मेला महोत्सव 20147 कोंडागांव, पारंपरिक मेला 2022 कोंडागांव सहित सैकड़ो प्रमाण-पत्र इनके झिटकू-मिटकी सेंटर पर देखी जा सकती  है।

कौन सी सामानें

शोक चक्रधारी तो मिट्टी शिल्पी हैं,लेकिन समय-समय पर उन्होंने कुछ चीजों के आविष्कार के माध्यम नई सीख दी है। इन्हीं में से एक है वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम जो कि खाली टीने से बनी पाइप लाईन को कुएं से जोड़ कर बारिश के पानी को सहेजने का जुगाड़ बनाया। मैजिक दीया जिसमें तेल खत्म हो जाने के बाद खुद ब खुद तेल भर जाएगा और दीया नियमित जलता रहेगा,देश विदेश में लोकप्रिय है। हाथी,घोड़ा, कई प्रकार के गमले, माड़िया,माड़िन की जीवंत मुर्तियां, पीने के पानी का जग,कप, सजावटी वस्तुएं पारंपरिक शिल्प ग्राम में झिटकू-मिटकी केंद्र में उपलब्ध कराया गया है। कई बार राज्योत्सव,बस्तर दशहरा सहित अन्य अवसरों पर दूरस्थ जगहों पर भी इंस्टाल लगाये जाते रहे हैं।

सम्पर्क –
अशोक चक्रधारी
कुम्हार पारा,कोण्डागांव
जिला- कोण्डागांव‚ बस्तर (छ.ग.)

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