”स्त्री के सुख चुकी सीने से उम्मीद” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

श्री मनोज जायसवाल
पिता-श्री अभय राम जायसवाल
माता-स्व.श्रीमती वीणा जायसवाल
जीवन संगिनी– श्रीमती धनेश्वरी जायसवाल
सन्तति- पुत्र 1. डीकेश जायसवाल 2. फलक जायसवाल
(साहित्य कला संगीत जगत को समर्पित)
”स्त्री के सुख चुकी सीने से उम्मीद”
जो तुम्हारी नजरों से गिर गये उनसे कभी संबंध रखना भी नही चाहिए। यहां तक कि ऐसे लोगों से फोन काल का संबंध भी ना रखें तो उचित है। ऐसे लोग लाख मिन्नतें करें! आपको लाख लालच दे दें। अपने में बने रहकर इन्हें दूर फटकने भी ना दें। इनकी अपनी शुभ भावनायें नहीं होती। शुभ भावनायें होती तो आपके पीठ पीछे ये अनर्गल बातें नहीं कर रहे होते। ऐसे दो मूंहे लोगों की अपनी ठोस नीति नहीं होती।
किसी भी आदमी में दो खास गुण नितांत आवश्यक है। पहला कि उसका नीति ठीक रहे। दूसरा कि उसकी नीयत अच्छी रहे। गलत नीयत का ही कारण कि इनमें शुभ विचार नहीं होते। यही कारण है कि कुछ ऐसे लोग सारे संसाधन के बावजूद किसी स्त्री के प्रति तिरस्कृत, गुलामी मिश्रित व्यवहार जो स्त्री को मन ही मन वेदित कर रही होती है,सलुक करते हैं।
ये तथाकथित स्त्री के सुख चूके सीने से भी उम्मीद करते संवेदना जता कर किसी स्त्री में खून की कमी दूर किये जाने के मरहम देने का प्रयास करते हैं। मौकापरस्त ये लोग ही एक दिन उन्हें अपने रूतबा दिखाते हैं। किसी स्त्री में खून की कमी दूर करने का इतना ही फिक्र होता तो ये पहले खून बढ़ाने की दवाई नहंी अपितु उनके साथ निःशुल्क सकारात्मक रूख रूपी दवाई का प्रयोग खुद करते, तब देखते कि कैसे किसी स्त्री में खून की कमी होती है। तब तुम्हें आश्चर्य होगा कि इन्हें खून की कमी अब क्यों नहीं हो रही है? हमने तो कोई पिलाने की दवाई ही नहीं दी।
ऐसे वे लोग जिनकी न नीति और ना नीयत अच्छी नहीं है। अच्छा सोच नहीं है। किसी स्त्री को सम्मान देने दिलाने की सोच नहीं है,इनसे अपने को दूर रखें। इनका तो कोई आधार नहीं है,बेशर्मीयत कूट-कूट कर भरी है,इन्हें क्या फर्क पड़ना है। फर्क तो उन्हें फर्क पडेगा जो इन पर भूल से भी विश्वास करेगा।