कविता काव्य

”सुनहरी धूप” श्री राजेश शुक्ला”काँकेरी शिक्षक साहित्यकार कांकेर छ.ग.

साहित्यकार परिचय-

श्री राजेश शुक्ला ”कांकेरी”

जन्म- 10 दिसंबर 1964

माता-पिता- स्व.कान्ति देवी शुक्ला/स्व.हरप्रसाद शुक्ला

शिक्षा- एम.कॉम, बी.एड.

प्रकाशन- कहानी (किरन),साझा संग्रह (काव्य धरोहर)

सम्मान-

सम्प्रति- व्याख्याता-शास.उच्च.माध्य.विद्या.कोरर, (काँकेर) छ.ग.।
संपर्क- 9826406234

 

”सुनहरी धूप”

खिड़की से है झाँकती,
धूप सुनहरी भोर की।
रंग – बिरंगा दृश्य है,
जैसे पाँंखें मोर की।

ठंडी हवाएँ भी चलती हैं,
पत्ते भी लहराते हैं।
मंद-मंद संगीत है बजता,
कलरव का है शोर भी।

.ऐसे में अलसाता ये मन,
भरता तन अँगड़ाई है।
ओस की शीतल बूँदों से,
सारी धरा नहाई है।

ऐसी भोर के रस का घूँट,
चूक न जाएँ पीने से।
स्वयं ये सृष्टि प्याला लेकर,
द्वार हमारे आई है।

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