कविता काव्य

“सुन लो ज़रा” डॉ. राखी कोर्राम ‘गुडिया’ साहित्यकार कांकेर छ.ग.

साहित्यकार-परिचय- राखी कोर्राम(गुड़िया ) 

 माता– पिता  श्रीमती  छबीला मरकाम श्री बलीराम मरकाम

जन्म 11 अगस्त 1979 रामपुर (जुनवानी)

शिक्षा – एम. ए.समाजशास्त्र । पोस्ट बी.एस.सी.नर्सिंग
 

प्रकाशन–काव्य संग्रह – “गुड़िया”,गुड़िया-2

पुरस्कार / सम्मान – दलित साहित्य अकादमी। छत्तीसगढ़ द्वारा वीरांगना।  अवन्तिबाई लोधी समता अवार्ड वर्ष (2020) – समता साहित्य अकादमी यवतमाल द्वारा क्रांतिज्योति सावित्री बाई फुले राष्ट्रीय समता । अवार्ड वर्ष (2020) ।  दलित साहित्य अकादमी। छत्तीसगढ़ द्वारा संत माता कर्मा महिला सशक्तिकरण अवार्ड वर्ष (2021) । समता साहित्य अकादमी। नागपुर द्वारा कर्तव्यदक्ष।नारी शक्ति राष्ट्रीय अवार्ड। वर्ष (2021)  समता साहित्य अकादमी जयपुर (राजिस्थान )द्वारा संत मीराबाई अंतराष्ट्रीय
अवार्ड वर्ष (2021)  समता साहित्य अकादमी नागपुर (महाराष्ट्र )द्वारा आदर्श नारी शक्ति अवार्ड (2022)

संप्रति – सामु.स्वा.केंद्र नरहरपुर जिला – कांकेर (छ. ग.) में  स्टॉफ नर्स के पद पर कार्यरत ।

विशेष – कार्यालय कलेक्टर जिला उत्तर बस्तर कांकेर द्वारा  महिला सशक्तिकरण प्रशस्ति पत्र वर्ष (2015) – कार्यालय कलेक्टर जिला उत्तर  बस्तर कांकेर द्वारा कोरोना
योद्धा प्रशस्ति पत्र।  ( 2021) 

सम्पर्क – अस्पताल परिसर सामु. स्वा. केंद्र नरहरपुर, जिला–कांकेर (छ. ग.) मोबाइल नम्बर – 9329339007

“सुन लो ज़रा “
मिट्टी की मूरत में वो समाई नहीं,
महज़ नौ दिन के लिए घर तेरे आई नहीं,
वह तो संग सदा तेरे रहती है,
सुन लो ज़रा क़्या कहती है
क्यों बेटी को कहते पराई है,
बहना से सजती कलाई है
माँ जो हर दर्द सहती है,
सुन लो ज़रा क़्या कहती है
सात फेरों का रस्म निभाई है,
तब पत्नी बन घर आई है
वह तो संग सदा तेरे रहती है,
सुन लो ज़रा क़्या कहती है
बेटी बनकर धरा पर जो आई है,
हर फ़र्ज़ अपना जो निभाई है |
सारे जुल्मों सितम हँस के सहती है,
सुन लो ज़रा क़्या कहती है
स्वयं प्रकृति भी जिसमें समाई है,
नज़ाकत जो नारी ने पाई है
फूल बनकर कभी महकती भी है,
चिड़ियों की तरह चहकती भी है
शांत शीतल नदी सी वह बहती है,
सुन लो ज़रा क़्या कहती है
error: Content is protected !!