‘अरूणोदय’ श्री राजेश शुक्ला”काँकेरी” शिक्षक साहित्यकार,कांकेर छत्तीसगढ
‘अरूणोदय’ घना अँधेरा रात का जब, मन में भय भरता है। हाथ को जब हाथ न सूझे, मन केवल डरता है। अँधियारे की कालिमा में, मौन भी डरा – डरा सा। आस जरा सी उजियारे की, मन ढूँढा करता है।…
‘अरूणोदय’ घना अँधेरा रात का जब, मन में भय भरता है। हाथ को जब हाथ न सूझे, मन केवल डरता है। अँधियारे की कालिमा में, मौन भी डरा – डरा सा। आस जरा सी उजियारे की, मन ढूँढा करता है।…