सामाजिक सत्ता‘ कलम बिठाती है तो गिराती भी है!

सामाजिक सत्ता‘ कलम बिठाती है तो गिराती भी है!मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर छ.ग.

(मनोज जायसवाल) किसी घर को बनाने में जितना वक्त लगता है,गिराना पल भर का है। ठीक ऐसा ही सामाजिक सत्ता का है! सियासी सत्ता के तो दिनों नहीं मिनटों में भरभरा कर गिरने के किस्से नहीं अपितु धरातलीय सच से…

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