”पर क्या तुम नहीं बदली” श्री मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर छ.ग.
”पर क्या तुम नहीं बदली” जैसे नदी की धार राह बदल कर मुड़ जाती है तुम जिस दिन से अलग राह में मुड़ गई समुंदर भी याद करती है बरसात है, नदी से पानी आयेंगी पर उसी समुंदर जैसे…
”पर क्या तुम नहीं बदली” जैसे नदी की धार राह बदल कर मुड़ जाती है तुम जिस दिन से अलग राह में मुड़ गई समुंदर भी याद करती है बरसात है, नदी से पानी आयेंगी पर उसी समुंदर जैसे…