रक्तरंजित सूरज! डॉं. अचल भारती वरिष्ठ साहित्यकार बांका(बिहार)
संसार के चबूतरे पर बैठ देखता हूं सुवह का सूरज एक – एक बिन्दु जिसका रक्तरंजित मालूम पड़ता है वह किसी भेड़ – बकरे का रक्त नहीं है वह रक्त है आदि – मनु के बेटे- बेटी का…
संसार के चबूतरे पर बैठ देखता हूं सुवह का सूरज एक – एक बिन्दु जिसका रक्तरंजित मालूम पड़ता है वह किसी भेड़ – बकरे का रक्त नहीं है वह रक्त है आदि – मनु के बेटे- बेटी का…