रंगमंच की नियति अचल भारतीबांका

”रंगमंच की नियति” डाॅं. अचल भारती वरिष्ठ साहित्यकार,बांका(बिहार)

ढकोसला जारी है आठ- आठ आंसू रोने के आरोप- प्रत्यारोप का बाजार है गर्म मसीहा कहलाने को पग – पग हो रहा मंत्रोचार हर आंच की प्रतिक्रिया में उबल रहा ठन्डा पानी शासनाधिकार की लिप्सा में खण्ड- खण्ड होता भूगोल…

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