(मनोज जायसवाल)
सशक्त हस्ताक्षर सामाजिक सरोकार के माध्यम लगातार प्रत्येक समाज में खाका प्रस्तुत करने पर बनी हुई है। प्रत्येक समाज में तलाक के प्रकरण देखे जा रहे हैं, संबंध विच्छेद करना किसी भी दृष्टि से उचित तो नहीं है,लेकिन बात ना बनने पर इस विकल्प का सहारा लेतेे देखे जा सकते है। तलाक हर समाज में बुरी निगाहों से देखा जाता है,लेकिन जब स्थितियां दोनों पक्षों में मजबूर करे तब तलाक लेना ही पडता है।
तत्संबंध में छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के प्रवेश द्वार चारामा तहसील में साहू समाज की वस्तुस्थिति से तहसील साहू समाज चारामा के अध्यक्ष जितेंद्र साहू से मुखातिब होने पर अपनी बातें बतायी।
उन्होंने बताया कि चारामा तहसील में ही 12 से अधिक प्रकरण समाज में आया है। जिसमें से सभी का निराकरण किया गया है। प्रकरणों में दोनों पक्षों को काफी समझाईश दी गयी लेकिन अंतिम समय तक दोनों पक्षों में विच्छेद की बातों पर निर्णय किया गया।
शासकीय सेवारत युगलों के भी मामले थे। इगो भाव के चलते एक दूसरे में सामंजस्य नही बैठ पाने के चलते कुछ लोग संबंध विच्छेद का विचार बना लिए थे,तो कोई परिवार से अलग पति-पत्नी रहने की चाह का पूरा नहीं हो पाना।
रिश्तों में पति-पत्नी दोनों बराबरी का हकदार होते हैं,लेकिन पति का दमनात्मक व्यवहार अपनी पत्नी को नीचा दिखाने की भावना का ज्यादती होना उनके आत्म सम्मान को ठेस पहूंचाता है। इस तरह टूट जाने पर वह तलाक का फैसला लेती है। मानसिक शोषण का ज्यादती होना भी कारक है। मुख्य कारण पति-पत्नी का अविश्वास होना भी है,जिसके चलते रिश्ते नहीं टिकते।
तलाक दो परिवारों को विघटित करता है,जिससे समाज भी कमजोर होता है। समाज में अमूमन देखा जाता है कि तलाक की पहल ज्यादातर महिलाएं ही करती है। लेकिन तलाक के बाद जरूरी नहीं है कि आने वाली नयी जिंदगी उतना ही सफल रहे। उस जिंदगी में और भी संवेदित होकर चलना पडता है। क्योंकि समाज में ऐसे भी कई प्रकरण है,जहां तलाक उपरांत घर बसाने के नाम दूसरा विवाह किए वो भी सफल नहीं रहा।