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‘तलाक के नाम बना दिए मासूमों को अनाथ’ मनोज जायसवाल संपादक सशक्त हस्ताक्षर कांकेर(छ.ग.)

-जीवन में बहार लाने कथा श्रवण जरूरी।
(मनोज जायसवाल)

अपने पारिवारिक जीवन में बहार लाने के लिए कथा श्रवण से बढ़कर और कोई सशक्त माध्यम नहीं है। कथा श्रवण के साथ पाठन भी उतना ही महत्वपूर्ण है, लेकिन श्रवण करने में लोग संत से भौतिक जुड़ाव में होते हैं,इसलिए उनके जीवन में सीधा प्रभाव पड़ता है। आज के आधुनिकतम जीवनचर्या में न जाने गृहस्थ जीवन के कड़ुवाहट तले कितनों के परिवार तबाह नजर आते हैं।

वो मासूम जिनका अपने मां बाप से कोई शिकायत नहीं होता वो उनकी लड़ाई का दंश पूरी जिंदगी भोगने अनाथ की जिंदगी निर्वहन कर रहे होते हैं। पुरूष तो पुरूष कई मां इतनी निर्दयी होती है कि तलाक के नाम अन्य से विवाह रचाकर अलग जिंदगी बिता रही होती है। समझा जा सकता है कि अन्यों में भी तो वहीं भावनाएं होती है,इनकी संवेदनाएं इतनी मृत है कि कैसे अपने जीगर के टूकड़े याद नहीं आते होंगे। अबोध मासूमों को मातृत्व से अलग करना जीवन बडा पाप है। बच्चों का क्या गुनाह जो कि इगो‚अहं की लडाई में उन्हें इतनी बडी सजा दे रहे हैं।

साहित्य आलेख हमें अच्छी शिक्षा देते हैं,जिसका अनुसरण करना है। लेकिन समाज में सरोकार रखें तो  स्थिति तो इतना है कि कुछ  साहित्य क्षेत्र से जुड़े ज्ञानी भी तलाक और गृह क्लेश के दायरे में होते हैं। कला जगत में बताने की जरूरत नहीं सोशल मीडिया‚अखबार‚टीवी प्रतिदिन किस्सा बता रहे हैं । साहित्य क्षेत्र में  खुद की गृहस्थी जीवन में कड़ुवाहट को कई जगजाहिर कर देते हैं, और लोकजीवन में इसका क्या प्रभाव पड़ेगा इसकी परवाह नहीं करते। कई तो सत्संगों में जाते जरूर हैं,पर इसे अपने जीवन में उतारने गंभीर नहीं दिखते।

कथा श्रवण से बाहर आते ही वो पूर्व सा व्यवहार करते देखे जाते हैं। समाज के बीच ज्ञान की बातें लिखने वाले साहित्यकार या जो भी विधा से आते हों सर्वप्रथम अपने में उस अनुकुल होना जरूरी है। हम कितने ही दुःखों से घिरे हों, संतो के श्रीमुख से कथा श्रवण हमें मुक्ति की ओर ले जाता है, दुखों से उबार कर जीवन जीने की लालसा जगाता है।

भागवत प्रवचनों में जाने की क्षमता न हो तो टीवी पर भी प्रसारण का लाभ लेना चाहिए। रोजमर्रा में भौतिक सुख साधनों की अंधी दौड़ से विलग खुद की आत्मिक शांति के लिए अपनी निष्पक्ष सोच दूसरों की सेवा भावना और किसी के लिए अहित न किये जाने का व्यवहार कायम रखते जीवन जीकर देखें कि कैसा आनंद आता है। संपदाओं को बटोर भर लेने से आत्मिक शांति नहीं आ जाती। वो आपकी जरूरतें पूरा करती है।

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