”उपवास”
नवरात्रि के
पावन पर्व पर मैंने
हर मंच से
पूरी तन्मयता के साथ
मां की कविता पढ़नेवाले
अपने कवि मित्र
प्यारेलाल को फोन लगाया
उधर से बहुत ही धीमी आवाज में
“जय माता दी” का जवाब आया।
उसकी आवाज सुनकर
मैंने चिंतित होकर पूछा-
“क्या बात है,
तबीयत तो ठीक है तेरी?”
इस बार वह थोड़ा जोर से बोला-
“मुझे कुछ नहीं हुआ भाई,
निराहार रहने से आवाज में
थोड़ा फर्क तो पड़ता ही है।
इस बार नवरात्रि में
नौं दिनों का व्रत लेकर
मैंने भी रखें है
माता के उपवास।”
उसकी धार्मिक प्रवृत्ति की
प्रशंसा करते हुए
घर-परिवार के
हाल-चाल जानने के लिए
मैंने पूछ लिया- “और बता,
माताजी की तबीयत कैसी है?”
कुछ देर मौन रहकर
पहले से भी ज्यादा
धीमी आवाज में वह बोला-
“पता नहीं, ठीक ही होंगी,
बहुत दिन हो गए
मैं उनसे मिला भी नहीं हूं क्योंकि
जबसे घर का बंटवारा हुआ है
तबसे मां रहती है
छोटे भाई के पास।”