(मनोज जायसवाल)
– वक्त का खेल पूरी दुनियां पर‚कोई नही बचा इसके प्रभाव से।
दुनियाके मेले में वक्त का ही खेल चल रहा है। जीवन का कोई वक्त किसी को आबाद कर देता है,तो किसी की दुनिया ही बर्बाद कर देता है। वक्त से बड़ा शायद कोई नहीं है। दुनियां में एक सेकंड के वक्त में कोई इस दुनिया में जन्म ले रहा है,तो कोई विदा ले रहा होता है।
लोगमंदिरों पर नेमतें बरसाने की मांग करते हैं। चाहे कुछ ना दे पर कठिन वक्त ना दे। जिस वक्त में जीवन के महती विवाह संस्कारों में किसी स्त्री की मांगों में सिंदुर भरी जाती है, गोधुली काल के इस उत्सवी बेला की खुशियां तब मातम में बदल जाती है,जब वक्त के किसी हादसे पर उनके सर से सुहाग उजड जाता है। इसके साथ लंबी जिंदगी को एकाकीपन के साए के साथ पुर्ण संघर्षमय गुजारने की मजबूरी होती है।
अंतहीनउस दौर में किसी एकल साथी की पीडा को समझ पाना भला आज भौतिकता की चकाचौंध,स्वार्थ भरे वातावरण में संभव कहां? इस चकाचौंध भरी दुनिया में दूसरे की पीडा को समझने का वक्त ही नहीं। दूसरे की पीडा देखकर भी अपने साथ वैसा नहीं होने का घमंड! पहाड़ की जिंदगी के बीच ऊपर से किसी स्त्री के सुहाग उजड जाने के बाद एकल जिंदगी में दोषारोपण करते कुलक्षणी के नाम भाव पाले लोगों को कौन और कैसे समझाये कि यह वक्त ही है,जो कब किसके साथ आये।
वक्तने किसको छोड़ा है? वक्त अच्छा ही रहता तो त्रेता युग में मर्यादापुरूषोत्तम भगवान श्रीराम,सीता,लक्ष्मण को 14 वर्ष का वनवान नहीं झेलना पडता। वक्त ही है,जहां तब के युगों में किसी को श्राप देने का खामियाजा कई अच्छे अच्छों को भोगना पडा। इसलिए दुनिया में आज भी वक्त ही बड़ा बलवान माना गया है। दुनिया में ज्योतिष विधाओं में समय के अनुसार ही उन कठिन वक्त को जाना जाता है,इसके निदान के उपाय बताए जाते हैं।
किस प्रकार से आज की जीवनचर्या में स्वार्थ रूपी तत्व कार्यशैली के साथ शामिल हो गया है। शायद इसलिए कहावतें बन चुकी है,स्वार्थ की दुनिया है। मौसम की तरह रंग बदलने के गीत रचे गये हैं। उलाहनों में शामिल हो गया है कि तुम तो मौसम की तरह हो। कैसे आज आधुनिक जीवन में किसी वक्त में किसी से दुश्मनी हो जाती है,लोग समझते हैं कि उन दोनों में दुश्मनी है।
दूसरेलोग दोनों पक्षों को दुश्मनी नहीं रखने के नाम समझाईश देते उनके अपना होना साबित करते हैं,लेकिन अर्थ की इस दुनिया में कैसे जब वक्त आता है तो वे दोनों मिल जाते हैं, जहां समझाईश देने वाले पराए बन जाते हैं।