
(मनोज जायसवाल)
-मोर आदि भवानी तुहीला मंय सुमिरंव मॉं …..
-देश की प्रमुख शक्तिपीठों में एक जो मां जीवदानी को समर्पित है
-मोर आदि भवानी तुहीला मंय सुमिरंव मॉं …..
-देश की प्रमुख शक्तिपीठों में एक जो मां जीवदानी को समर्पित है
मरणासन्न लोगों को भी जीवनदान देने की शक्ति रखने वाली स्नेह एवं करूणा लुटाने वाली माता का नाम इसलिए जीवदानी होने का बोध होता है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से मात्र 65 किमी तथा दमन से 133 किमी की दूरी पर दमन-मुंबई मार्ग पर ऊंचे पहाड़ पर समुद्र तल से तकरीबन 1500 फीट की ऊंचाई पर विराजी है,मॉं जीवदानी। महाराष्ट्र के पालघर जिलांतर्गत आता है, विरार। सड़क मार्ग से ही पहाड़ी की अप्रतिम सुंदरता देखते बनती है।
यहां जो सात मंजिला भवन दिखता है,जिसके सबसे ऊपर में देवी मां का गर्भगृह है। वर्तमान में यहां लिफट,रोपवे एवं यहां बने तकरीबन 1350 सीढ़ीयों से जाया जा सकता है। जीवदानी मां की प्रतिमा निश्चित रूप से मनभावन परंतु आधुनिक है।लोगों से मुखातिब होने पर कई बातों का हमें पता चला। जनश्रुति के अनुसार लोगों का मानना है कि प्राचीनकाल से ही माता जीवदानी का वास रहा है।अतीत में एक कंदरा में मां ने अपने आप को छुपा लिया था,जहां एक सुराख में आम लोग पूजा अर्चना एवं चढ़ावे के रूप में पान(ताम्बूल) अर्पित किया करते थे।

हालांकि इस बात की पुष्टि न हो सकी हो। यह भी बताया जाता है कि वसाई के कोली समाज की यह कुलदेवी है,लेकिन यह क्षेत्र ही नहीं देश विदेश से आने वाले भक्त उसी श्रद्वा भक्ति से मानते हैं।प्रति वर्ष नवरात्रि के अवसर पर बड़ी संख्या में श्रद्वालु एवं सैलानी दर्शन को आते हैं। अभी जहां पहाड़ी पर आवाजाही के आधुनिक साधन हैं,वहीं अतीत में लोग पैदल पहाड़ी पर चढ़ा करते थे। इस स्थान विरार शहर को पहले एक वीरा नाम से जाना जाता था इसलिए इस मंदिर को एकवीरा देवी के नाम से भी जाना जाता था। मुगलों व पुर्तगालों के हमले सं मंदिर जीणशीर्ण अवस्था में पहूंच गया था जिसे बाद जीर्णाेद्वार कराया गया। जैसा कि अन्य मंदिरों पर कई किवदंतियां होती है,इस पहाड़ी पर स्थित मंदिर के संबंध में भी किवदंतियां है।
मुख्य रूप से बताया जाता है कि इस मंदिर को पाण्डवों ने अपने वनवास के समय बनवाया । उन्होंने सतपुड़ा पर्वतों में एकवीरा माता को गुफा में स्थापना की थी,जिसे जीवदानी कहते थे। पाण्डवों ने उस समय इस मंदिर के आसपास संतो,ऋषि मुनियों के लिए कई गुफाओं का निर्माण किया तब से इस क्षेत्र को पाण्डव डोंगरी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक कथाओं की लें तो यह उल्लेख मिलता है कि आदि शक्ति ने राजा दक्ष की पूजा में भगवान शिव के अपमान पर अपने शरीर को हवन की अग्नि में तर्पण कर दिया था।

भगवान शिव आदि शक्ति के शरीर को लेकर जा रहे थे तब भगवान विश्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से 51 हिस्सों में विभाजन कर दिए थे। माता आदि शक्ति के टुकड़े जहां गिरे वह स्थान शक्ति पीठ बन गई। जीवदानी माता भी महाराष्ट्र के 18 शक्ति पीठों में एक है। यदि आप फलाइट से आ रहे हैं तो मुंबई से पालघर 2 घंटे,सड़क मार्ग के रास्ते मुंबई से 106 किमी तथा सुरत से 216 किमी पर पालघर आकर यहां से माता दर्शन को विरार जा सकते हैं।
नगर में बेहतर क्वालिटी के रूकने के स्थान होटल उपलब्ध है। इसके साथ माता दर्शन के साथ पर्यटन के रूप में दमन पहूंच कर समुद्री तटों पर आनंद ले सकते हैं। सिने कला जगत क्षेत्र में देखा जाए तो इस क्षेत्र में कई फिल्मों की शुटिंग भी हुई है,बेहतर शुटिंग स्पाट के चलते बालीवुड अपितु प्रादेशिक फिल्मों की शुट फिल्म निर्माताओं को भी लुभाती है। हमारा किसी भी कथा कहानी के पीछे अंधविश्वास फैलाना,काल्पनिक बातें बताना ऐसा कोई उद्वेश्य नहीं है,अपितु जो बातें हमें मुखातिब होने पर बताया जा रहा है वही लिख रहे हैं। इस नवरात्रि पर्व पर भी काफी भंड़ देखी जा रही है। लोग मंदिर के साथ ही प्राकृतिक सुंदरता का लुत्फ उठाने भी बड़ी संख्या में यहां आते रहे हैं।